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________________ 66 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements राग-द्वेष- कामादिक जीते, मोह शत्रु के सब हथियार, सुख-दुःख जीते, उन वीरों को नमन करूँ मैं बारंबार ॥ मुख्तार सा. 'युगवीर' के नाम से कवितायें लिखते थे। युगवीर के अनुसार वीर वाणी समस्त प्राणियों को तारने के लिए जलपान के समान है। यह संसार में अमृत के समान प्रकट हुई है। अनेकान्तमयी उनकी वाणी स्यात् पद से लांछित है तथा न्याय और नीति की खान है। यह सब कुवादो का नाश कर सतज्ञान को विस्तारित करती है। वीर वाणी नामक कविता में वे कहते हैं अखिल जग-तारन को जल-यान । प्रकटी वीर, तुम्हारी वाणी, जग में सुधा समान ॥ अनेकान्तमय स्यात्पद लांछित नीति-न्याय की खान । सब कुवाद का मूल नाश कर, फैलाती सतज्ञान ॥ मुख्तार सा. उन्हें उपास्य मानते हैं, जिन्होंने मोह को जीत लिया। जिन्होंने काम, क्रोध, मद, लोभ जैसे सुभटों को पछाड़ दिया। मायारूपी कुटिलनीतिरूप नागिन को मारकर अपने आप की रक्षा की। जिनकी ज्ञान ज्योति से मिथ्यात्वरूपी अन्धकार का लोप हो गया जिनकी इन्द्रिय रूपी विषय लालसा कुछ अविशष्ट नहीं रही। जिसने असंग व्रतका वेष धारण कर समस्त तृष्णा रूपी नदी को सुखा दिया। जो दुःख में उद्विग्न नहीं रहते तथा सुख में चित्त को लुभाते नहीं हैं। जो आत्मरूप में संतुष्ट रहकर निर्धन और धनी को समान मानते हैं, जो निन्दा और स्तुति को समान मानते हैं तथा जो प्रमादरहित तथा निष्पाप होते हैं। उनका साम्यभाव रूपी रस के आस्वादन से समस्त हृदय का सन्ताप मिट जाता है। जो धैर्य रखकर अहंकार और ममकार के चक्र से निकल गए हैं तथा विश्व प्रेम का नीर पीकर निर्विकार और निर्वैर हो गए हैं। ऐसी आत्माओं को उपास्य मानकर मुख्तार सा. कहते हैं साध आत्म-हित जिन वीरों ने किया विश्व कल्याण । युग मुमुक्षु उनको नित ध्यावे, छोड़ सकल अभिमान ॥ मोह जिन जीत लिया, वे हैं परम उपास्य ॥
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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