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________________ 54 Pandit jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements विवेकी कौन', 'पापों से बचने का गुरुमंत्र', 'सेवाधर्म', 'उपासना तत्व', 'वीतराग की पूजा क्यों ?', 'म्लेच्छ कन्याओं से विवाह', 'सन्मति विद्या' आदि। भाष्यकार : आर्ष ग्रन्थों का आधार वस्तुतः मूल लेखक से भाष्यकार का कार्य अधिक कठिन होता है, क्योंकि उसे अपने भाष्य में ग्रन्थ के मूल भावों को यथावत् बनाए रखने के साथ-साथ उसके प्रत्येक पद एवं प्रयोगित विशेष शब्दों का अर्थ और उसके रहस्यगत भावार्थ को स्पष्ट करना पड़ता है। भाष्य में भाष्यकार के अपने व्यक्तिगत विचारों का कोई स्थान नहीं है। उसे तटस्थ भाव से विषय-वस्तु का विश्लेषण करना होता है तथा संभावित शंकाओं का उचित समाधान भी अन्य ग्रन्थों की सहायता से करना होता है। मुख्तार सा. ने आचार्य समन्तभद्र के ग्रन्थों सहित अन्य आचार्यों के ग्रन्थों, स्तोत्रों आदि पर सफलतम भाष्य लिखे हैं , यथा-रत्नकरण्ड श्रावकाचार भाष्य (समीचीन धर्मशास्त्र), (स्वयम्भूस्तोत्र भाष्य, देवागम), (आप्तमीमांसाभाष्य), (युक्त्यानुशासन भाष्य, तत्वानुशासन भाष्य, अध्यात्मरहस्य भाष्य, योगसार, प्राभूत भाष्य, कल्याण मंदिर स्तोत्र भाष्य), (कल्याण कल्पद्रुम) आदि। समीक्षक/ग्रन्थ परीक्षक: आर्ष परम्परा के रक्षक ग्रन्थ परीक्षक के रूप में मुख्तार सा. ने जैन दर्शन और संस्कृति पर बड़ा उपकार किया है। दो भागों में प्रकाशित ग्रन्थ परीक्षा ने जैन धर्म और दर्शन के क्षेत्र में नकली लेखकों को बेनकाब कर संस्कृति संरक्षण का महत् कार्य किया। लेखक के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त करने की लालसा से जिनसेन (जिनसेनाचार्य नहीं) श्रुतसागर, सोमसेन आदि भट्टारकों ने मूल ग्रन्थों को तोड़-मरोड़ कर वेदिक संस्कृति के आचार्यों के ग्रन्थों से परस्पर विरोधी तत्वों को मिला-जुला कर 'उमास्वामी श्रावकाचार', 'कुन्द कुन्द श्रावकाचार', 'त्रिवर्णाचार', भद्रबाहु संहिता आदि प्रकाशित कराए। चूंकि ये ग्रन्थ संस्कृत/ प्राकृत भाषा में थे, अत: अज्ञानवश जैन धर्मावलम्बी इन्हें जिनवचन/जिनोपदेश मानकर स्वाध्याय करते थे।मुख्तार सा.ने जैन वाङ्मय के गहन अध्ययन द्वारा
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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