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________________ - पं. गुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व द्रव्य पूजा संस्कृत की उत्कृष्ट भक्तिपरक रचनाएँ हैं। हिन्दी रचनाओं को उपासना खंड, मानवता खंडा, सम्बोधन खंड, सत्प्रेरणाखंड आदि में विभक्त कर उसको अधिक उपयोगी बना दिया है। मेरी भावना का विस्तृत विवेचन यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि कवि युगवीर एक सिद्धहस्त काव्य रचनाकार हैं, जिन्होंने सरल और सीधी भाषा में भावों का इतना उन्नत अंकन किया है जो मनोवैज्ञानिक रूप से हृदय पर सीधी चोट कर उसे झकझोर कर देते हैं। एक बानगी देखिये: अस्पृश्यता निवारण के अपने अडिग विचारों को 'मानव धर्म' नामक कविता के माध्यम से स्पष्ट करते हुए वे लिखते हैं 'गर्भवास और जन्म समय में कौन नहीं अस्पृश्य हुआ? कौन मलों से भरा नहीं है? किसने मल-मूत्र न साफ किया? किसे अछूत जन्म से तब फिर कहना उचित बताते हो? तिरस्कार भंगी चमार का करते क्यों न लजाते हो?' निबन्धकार : विषय-वस्तु का विस्तार काव्य मनीषी होने के साथ-साथ मुख्तार सा. एक महान निबन्धकार के रूप में भी प्रतिष्ठित हैं। दो खंडों में प्रकाशित 'युगवीर निबन्धावली' उनकी ऐसी अद्भुत कृति है। जिसमें विषय-वस्तु की विविधता उन्हें मूलतः एक चिन्तक, अध्येता, सुधारक, दार्शनिक और राष्ट्र प्रेमी के रूप में प्रस्तुत करती है। उन्होंने अध्यात्म, दर्शन, न्यायनीति, आचार, भक्ति, समाज सुधार, राजनीति, राष्ट्रीयता, संस्कृति, इतिहास, समालोचना, समीक्षा, मनोविज्ञान, व्यंग्य-विनोद, शिक्षा आदि अनेक विषयों पर अपनी लेखनी चलाई है। अन्धविश्वास और रूढ़ियों पर प्रहार करते हुए समसामयिक समस्याओं का सूक्ष्म, विशद एवं सटीक विवेचन के साथ-साथ उनका तार्किक एवं सप्रमाणिक समाधान उनके निबन्धों की विशेषता है। कुछ निबन्धों के शीर्षक मात्र से समसामयिक वस्तु-विषय-वैविध्य, उनकी सूझ-बूझ और विश्लेषणात्मक पकड़ स्पष्ट हो जाती है यथाः - 'नौकरों से पूजा कराना', 'जाति पंचायतों का दंड विधान', जाति भेद पर अमितगति', विवाह समुद्देश्य', 'बड़ा दानी-छटा दानी', 'जैनियों की दया', 'हमारी दुर्दशा क्यों', 'स्व-पर
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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