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________________ जुगलकिशोर मुख्तार : सद्भावना के पर्याय डॉ. प्रेमचन्द जैन, गंजबासोदा बात 1954 की है, जब मैं बरेली (भोपाल) के एक गाँव गगनवाड़ा में शासकीय विद्यालय का एक शिक्षक नियुक्त हुआ था। आसपास के ग्रामों में नियुक्त प्रायः सभी शिक्षक बरेली में ही निवास करते थे। हमारे सहायक जिला शालानिरीक्षक श्री एम. पी. माहेश्वरी एक धार्मिक आचरण वाले संप्रदाय निरपेक्ष सहिष्णु प्रकृति के सदाचारी व्यक्ति थे। सायंकाल लगभग हम सभी शिक्षक उनके निवास पर एकान्त में, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर चर्चा किया करते थे। एक दिन श्री माहेश्वरी ने सुझाव दिया कि सायंकाल एक सामूहिक प्रार्थना प्रारंभ की जावे। भक्ति भाव से ओत-प्रोत अनेक प्रचलित प्रार्थनाओं के प्रस्ताव आए। चूँकि वे सभी किसी न किसी धार्मिक आस्था वाले सम्प्रदाय से सम्बन्धित थी, उन पर मतैक्य न हो सका। अंत में मैंने "मेरी भावना" का सस्वर वाचन किया तो आश्चर्यजनक रूप से सभी और हमारे शाला निरीक्षक ने एकमत से सामूहिक प्रार्थना के रूप में इसे स्वीकार कर लिया। उस समय फोटो कापी तो होती नहीं थी, अतः इस पुस्तिका की कम से कम 50 प्रतियाँ मंगवाने का दायित्व सौंपा गया उस समय मेरे अग्रज पं. ज्ञानचन्द्र जी "स्वतंत्र"सूरत में जैन मित्र के संपादक थे। मैंने तुरन्त उन्हें पत्र लिखा और उनकी सौजन्यता से हमें "मेरी भावना" दैनिक सायं प्रार्थना के रूप में हमारे आचार का एक अंग बन गयी। पं. जुगलकिशोर मुख्तार की यह एक छोटी-सी कृति ही उसी तरह उन्हें अमर रहने के लिए पर्याप्त है जिस तरह प्राचीन काव्य के क्षेत्र में नरोत्तमदास ने मात्र "सुदामाचरित" लिखकर कहानी के क्षेत्र में चन्द्रधर शर्मा गलेरी ने "उसने कहा था" लिखकर, बहादुर शाह जफर की "लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े बयार में" जायसी अपनी पद्मावत द्वारा, कबीर रहीम अपने कुछ दोहों साखियों के बल पर साहित्य के क्षेत्र में अजर-अमर हो गये हैं। जिस तरह प्रत्येक हिन्दू परिवार के
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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