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________________ प्रस्तावना 'दर्शनिकः संसारशरीरभोगनिर्विण्णः पंचगुरुचरणभक्तः सम्यग्दर्शनशुद्धश्च भवति ।' -चारित्रसार उपसर्गे दुर्भिक्षे जरसि रुजायां च निःप्रतीकारे । धर्माय ननुविमोचनमाहुः सल्लेखनामार्याः ॥ ---रत्नकरंड 'उपसर्गे दुर्भिक्षे जरसि निःप्रतीकाररुजायां धर्म तनुत्यजनं सल्लेखना ।' -चारित्रसार यह 'चारित्रसार' ग्रन्थ उन पाँच-सात खास माननीय प्रन्थामेंसे है जिनके आधारपर पं० आशाधरजीने सागरधर्मामृतकी रचना की है, और इसलिये उसमें रत्नकरंडके इस प्रकारके शब्दानुसरणसे रत्नकरंडकी महत्ता, प्राचीनता और मान्यता और भी अधिकताके साथ ख्यापित होती है । और भी कितने ही प्राचीन प्रन्धों में अनेक प्रकारसे इस ग्रन्थका अनुसरण पाया जाता है, जिनके उल्लेखको विस्तारभयसे यहाँ छोड़नेके लिये मैं मजबूर हूँ-मात्र वि. की छठी शताब्दीके विद्वान् आचार्यश्रीपज्यपादकी ‘सर्वार्थसिद्धि' का नामोल्लेख कर देना चाहता हूँ, जिसपर समन्तभद्रके इस ग्रन्थ-प्रभावको भी स्वतन्त्र लेख-द्वारा स्पष्ट किया जा चुका है। । साथ ही सिद्धसेनके 'न्यायावतार' का भी नाम ले देना चाहता हूँ, जिसमें इस ग्रन्थका 'आप्तोपज्ञ' पद्य ( नं. ६) उद्धत पाया जाता है और जिसके इस उद्धरणको भी स्पष्ट किया जा चुका है। __ + वे ग्रन्थ इस प्रकार है--१ रत्नकरंड, २ सोमदेवकृत-यशस्तिलकान्तर्गत उपासकाध्ययन, ३ चारित्रसार, ४ वसुनंदि-श्रावकाचार, ५ श्रीजिनमेनकृत ग्रादिपुराण, ६ तत्त्वार्थसूत्र आदि । * देखो, 'सर्वार्थ सिद्धिपर समन्तभद्रका प्रभाव' नामक लेख 'अनेकान्त' वर्ष ५ किरण १०-११ पृष्ठ ३४६-३५२ * देखो, अनेकान्त वर्ष ६, कि० ३ पृ० १०२-१०४
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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