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________________ प्रस्तावना भट्टारकके पट्टशिष्य 'जिनसेन' भट्टारकके पट्ट पर प्रतिष्ठित होनेवाले लिखा है । साथ ही, यह भी सूचित किया है कि ये अभिनव सोमसेन गुणभद्रभट्टारकके पट्टशिष्य थे। गुणभद्र भट्टारकके पट्टशिष्य सोमसेनभट्टारकका बनाया हुआ 'धर्मरसिक' नामका एक त्रैवर्णिकाचार (त्रिवर्णाचार ) ग्रन्थ सर्वत्र प्रसिद्ध है-वह मुद्रित भी हो चुका है और इसलिये ये समन्तभद्र भट्टारक उन्हीं सोमसन परकके प्रपट्टशिष्य थे जिन्होंने उक्त त्रिवर्णाचारकी रचना की है. ऐसा कहने में कुछ भी संकोच नहीं होता। सोमसेनका यह त्रिवर्णाचार विक्रम संवत् १६६७ में बनकर समाप्त हुआ है। अतः इन समंतभद्र भट्टारकको विक्रमकी सतरहवीं शताब्दीके अन्तिम भागका विद्वान समझना चाहिये । छट गृहस्थ समन्तभद्र' थे जिनका ममय विक्रमी प्रायः १७वीं शताब्दी पाया जाता है। वे उन गृहस्थाचाय नेमिचन्द्रके भतीज थे जिन्होंने प्रतिष्ठातिलक' नामके एक ग्रन्थकी रचना की है और जिस 'नामचंद्रसंहिता' अथवा 'मिचंद्र-प्रतिष्ठापाठ' भी कहते है और जिसका परिचय अप्रेल सन १६१६ के जनहितपीमें दिया जा चुका है । इस ग्रन्थमें समंतभद्र को साहित्यरसका प्रेमी सूचित किया है और यह बतलाया है कि ये भी उन लोगोंमें शामिल थे जिन्होंने उक्त ग्रन्थक रचनेकी नमिचंद्रसे प्रार्थना की थी। संभव है कि 'पूजाविधि' नामका ग्रन्थ जो 'दिगम्बरजैनग्रन्थकर्ता और उनके ग्रन्थ' नामकी सूचीमें दर्ज है वह इन्हींका बनाया हुआ हो। (२) रत्नकरंडके प्रणेता आचार्य समन्तभद्रक नामके साथ 'लघु, 'चिक्क,' 'गेरुसोप्पे,' 'अभिनव' या 'भट्टारक' शब्द लगा हुआ नहीं है और न ग्रन्थमें उनका दूसरा नाम कहीं 'माघनंदी' ही सूचित किया गया है; बल्कि ग्रन्थकी संपूर्ण संधियोंमें-टीकामें भी उनके नामके साथ 'स्वामी' शब्द लगा हुआ है और
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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