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________________ प्रस्तावना A N .. .. . दूसरे 'चिक समन्तभद्र' कहलाते हैं। श्राराके जैनसिद्धान्तभवनकी सूचीमें 'चिक्कसमंतभद्रस्तोत्र' नामसे जिस पुस्तकका उल्लेख है वह इन्हींकी बनाई हुई कही जाती है और उसको निकलवाकर देखनेसे मालूम हुआ कि वह वही स्तुति है जो 'जैनसिद्धान्तभास्कर' प्रथम भागकी ४थी किरणमें 'एक ऐतिहासिक स्तुति के नाम से प्रकाशित हुई है और जिसके अन्तिम पद्यमें उसके रचयिताका नाम माघनविव्रती' दिया है इससे चिक्कसमंतभद्र उक्त माघनंदीका ही नामान्तर जान पड़ता है। कर्णाटक देशके एक कनड़ी विद्वानस भी मुझे ऐसा ही मालूम हुआ है। वणी नमिसागरजीने भी अपने एक पत्रमें सूचित किया है कि "इन माघनंदीके लिये 'चिक्क ममन्तभद्र' या लघु समन्तभद्र' यह नाम इधर ( दक्षिणमें ) रूढ है। 'चिक' शब्द का अर्थ भी लघु या छोटेका है।'' आश्चर्य नहीं. जो उक्त लधु समंतभद्र और यह चिक समंतभद्र दोनों एक ही व्यक्ति हों,और माघनंदि-व्रती भी कहलाते हो । माघनंदि-व्रती नामक एक विद्वान अमरकीर्ति' आचार्यक शिष्य हुए है, और उक्त ऐतिहासिक स्तुतिके आदि-अन्तके दोनों पद्योंमें 'अमर' शब्द का खास तौर से प्रयोग पाया जाता है। इससे ऐसा मालूम होता है कि संभवतः ये ही माघनदि-व्रती अमरकीर्ति आचार्यके शिष्य थे और उन्होंने 'अमर' शब्दके प्रयोग-द्वारा, उक्त स्तुतिमें, अपने गुरुका नाम-स्मरण भी किया है। यदि यह ठीक हो तो इन माघनंदि-व्रती अथवा चिक्क समन्तभद्रको विक्रमकी चौदहवीं शताब्दीका विद्वान समझना चाहिये; क्योंकि माघनंदि-व्रतीके शिष्य और अमरकीतिके प्रशिष्य भोगराजने शक संवत १२७७ (वि०सं० १४०२) में शांतिनाथ जिनेश्वरकी एक मूर्तिको जो आजकल रायदुर्ग ताल्लुके के दफ्तरमें मौजूद है-प्रतिष्ठित कराया था, जैसा कि उक्त मूर्तिके लेख परसे प्रकट है । * देखो, 'साउथ इंडियन जैनिज्म' भाग दूसरा, पृष्ठ ५७ ।
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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