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________________ प्रस्तावना ऐसा नहीं मिला जो इससे अधिक बड़ा और साथ ही अधिक प्राचीन हो । प्रकृत-विषयका अलग और स्वतन्त्र ग्रन्थ तो शायद इससे पहलेका कोई भी उपलब्ध नहीं है । पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, चारित्रसार, सोमदेव-उपासकाध्ययन, अमितगति-उपासकाचार, वसुनन्दिश्रावकाचार, सागारधर्मामृत, और लाटीसंहिता श्रादिक जो प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं वे सब इसके बादके ही बने हुए हैं। और इसलिये, उपलब्ध जैनसाहित्यमें, यदि इस ग्रंथको 'प्रथम श्रावकाचार' का नाम दिया जाय तो शायद कुछ भी अनुचित न होगा । छोटा होने पर भी इसमें श्रावकोंके लिये जिन सल्लक्षणान्वित धर्मरत्नोंका संग्रह किया गया है वे अवश्य ही बहुमूल्य हैं। और इसलिये यह ग्रंथ आकारमें छोटा होनेपर भी मूल्यमें बड़ा है, ऐसा कहने में जरा भी संकोच नहीं होता । टीकाकार प्रभाचंद्रन हमे 'अाखिल सागारमार्ग (गृहस्थधर्म) को प्रकाशित करनेवाला निर्मल 'सूर्य' लिखा है और श्रीवादिराजसूरिने 'अक्षय्यसुखावह विशेषगक साथ इसका स्मरण किया है। श्रीकुन्दकुन्दाचार्य के 'चारित्रपाहुड' में श्रावकोंके संयमाचरणको प्रतिपादन करनेवाली कुल पाँच गाथाएँ हैं जिनमें ११ प्रतिमाओं तथा १२ व्रतोंके नाममात्र दिये हैं --उनका स्वरूपादिक कुछ नहीं दिया और न ब्रतोंके अतीचारोंका ही उल्लेख किया है । उमास्वाति महाराजके तत्त्वार्थमूत्रमें व्रतोंके अतीचार जरूर दिये हैं परन्तु दिग्वतादिकके लक्षणोंका तथा अनर्थदंडके भेदादिका उसमें अभाव है और अहिंसावतादिके जो लक्षरप दिये हैं वे स्वास श्रावकोंको लक्ष्य करके नहीं लिखे गये। सल्लेखनाका स्वरूप और विधि-विधानादिक भी उसमें नहीं है । ग्यारह प्रतिमाओंके कथन तथा और भी कितनी ही बातोंके उल्लेखसे वह रहित है, और इस तरह उसमें भी श्रावकाचारका बहुत ही संक्षिप्त वर्णन है ।
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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