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________________ प्रस्तावना सेवा और परिग्रहरूप पापप्रणालिकाओंसे विरतिरूप बतलाया है। साथ ही, चारित्रके 'सकल' और 'विकल' ऐसे दो भेद करके और यह जतलाकर कि सकलचारित्र सर्वसंगविरत मुनियोंके होता है और विकलचारित्र परिग्रहसहित गृहस्थोंके, गृहस्थोंके योग्य विकलचारित्रके बारह भेद किये हैं, जिनमें पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत त्राार चार शिक्षाव्रत शामिल हैं। इसके बाद हिंसा, असत्य, चारी, कामसेवा और परिग्रहरूप पाँच पापोंके स्थूलरूप से त्यागको प्रणुव्रत' बतलाया है और अहिंसादि पाँचों अणुव्रताका स्वरूप उनके पाँच-पाँच अतीचारों सहित दिया है। साथ ही यह प्रतिपादन किया है कि मद्य, मांस और मधुके त्यागसहित ये पंचअगुव्रत गृहस्थों के 'अष्ट मूलगुण' कहलाते हैं। चौथे अध्ययनमें दिग्बत, अनर्थदण्डव्रत और भोगोपभोगपरिमाण नामसे तीन गुणव्रतोंका उनके पाँच-पाँच अतिचारोंसहित कथन है; पापोपदेश, हिंसादान, अपध्यान, दुः श्रुति और प्रमादचर्या ऐसे अनथदंडके पाँच भेदोंका वर्णन है और भोगोपभोगकी व्याख्याक साथ उसमें कुछ विशेप त्यागका विधान, व्रतका लक्षण और यमनियमका स्वरूप भी दिया है। पाँचवें अध्ययन में देशावकाशिक, सामायिक, प्रोषधोपवास और वैय्यावृत्य नामके चार शिक्षाव्रतोंका, उनके पाँच-पाँच अतीचारोंसहित, वर्णन है । सामायिक और प्रोषधोपवासके कथनमें कुछ विशेष कतव्योंका भी उल्लेख किया है और सामायिकके समय गृहस्थको 'चेलोपसृष्ट मुनि' की उपमा दी है। वैय्यावृत्यमें संयमियोंको दान देने और देवाधिदेवकी पूजा करनेका भी विधान किया है और उस दानके आहार, औषध, उपकरण, आवास ऐसे चार भेद किये हैं। छठे अध्ययनमें अनुष्ठानावस्थाके निर्देशसहित, सल्लेखना
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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