SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कारिका ५२ ] ८६ अणुव्रत - लक्षण व्याख्या – यहाँ पापोंके पाँच नाम दिये हैं, जिन्हें अन्यत्र दूसरे नामोंसे भी उल्लेखित किया है, और उनका स्थूल विशेषण देकर मोटे रूपमें उनसे विरक्त होनेको 'अणुव्रत' बतलाया है । इससे दो बातें फलित होती हैं—एक तो यह कि इन पापोंका सूक्ष्मरूप भी है और इस तरह से पाप स्थूल सूक्ष्मके भेदसे दो भागोंमें विभक्त हैं। अगली एक कारिका 'सीमान्तनां परत:' (६५) में 'स्थूलेतरपंच पापसंत्यागात्' इस पदके द्वारा इन पांच पापोंके 'स्थूल' और 'सूक्ष्म ऐसे दो भेदों का स्पष्ट निर्देश भी किया गया है और ६वीं तथा अव कारिकाओंमें सूक्ष्मपानको 'पाप' नामसे और rat कारिका में स्थूल पापको 'अकृश' शब्द से उल्लेखित किया है, इसमें 'अणु' और 'कुश' भी सूक्ष्मके नामान्तर हैं । दूसरी बात यह कि सूक्ष्मरूपसे अथवा पूर्णरूपसे इन पापोंसे विरक्त होनेका नाम 'महाव्रत' है. जिसकी सूचना कारिका और ६५ से भी मिलती है । وری دی इसके सिवाय, जिन्हें यहाँ 'पाप' बतलाया गया है उन्हें ही चारित्रका लक्षण प्रतिपादन करते हुए पिछली एक कारिका ( ४६ ) में 'पापप्रणालिका' लिखा है, और इससे यह जाना जाता है कि यहां कारण कार्यका उपचार करके पापके कारणोंको 'पाप' कहा गया है । वास्तव में पाप मोहनीयादि कर्मोंकी वे प्रशस्त प्रकृतियाँ हैं जिनका आत्मा आस्रव तथा बन्ध इन हिंसादिरूप योगपरिणति से होता है और इसीसे इनको 'पापप्रणालिका' कहा गया है। स्वयं ग्रन्थकार महोदय ने अपने स्वयम्भुस्तोत्र में 'मोहरूपो रिपुः पापः कषायभटसावन : ' इस वाक्य के द्वारा 'मोह' को उसके क्रोधादि - कपाय-भटों सहित 'पाप' बतलाया है और देवागम (१५) तथा इस ग्रन्थ (का. २७) में भी 'पापास्रव' जैसे शब्दोंका प्रयोग करके कर्मोंकी दर्शनमोहादिरूप अशुभ प्रकृतियोंको ही 'पाप' सूचित किया है । तत्त्वार्थसूत्र में श्रीगृध्रपिच्छाचार्य ने भी
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy