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________________ समीचीन-धर्मशास्त्र [अ० १ ( Skilful, Clever ) को भी प्राप्त कहते हैं । और ऐसे प्राप्त लौकिक विपयोंके अनेक हुआ करते हैं। प्राप्तके वाक्यका नाम 'आगम' है अथवा आगम शब्द शास्त्रमात्रका वाचक है*--स्वयं ग्रन्थकारने भी शास्त्रशब्दके द्वारा उसका इसी ग्रन्थमें तथा अन्यत्र भी निर्देश किया है । और लौकिक विषयोंके अनेक शास्त्र होते ही है, जैसेकि वैद्यक-शास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, शब्दशास्त्र, गणितशास्त्र, मंत्रशास्त्र, छंदशास्त्र, अलंकारशास्त्र, निमित्तशास्त्र, अर्थशास्त्र, भूगर्भशास्त्र इत्यादि । इसी तरह अनेक विद्या, कला तथा लौकिकशास्त्रोंकी शिक्षा देनेवाले गुरु भी लोकमें प्रसिद्ध ही हैं अथवा लौकिक विषयोंकी सिद्धिके लिए अनेक प्रकारकी नपस्या करनेवाले तपस्वी भी पाये जाते हैं; जैसे कि अाजकल अद्भुतअद्भुत आविष्कार करनेवाले वैज्ञानिक उपलब्ध होते हैं। परमार्थ विशेषणसे इन सब लौकिक आप्तादिकका पृथक्करण होजाता है। साथ ही, परमार्थका अर्थ यथार्थ (सत्यार्थ) होनेसे इस विशेषणके द्वारा यह भी प्रतिपादित किया गया है कि वे अाप्तादिक यथार्थ अर्थात् सच्चे होने चाहिये- अयथार्थ एवं भूठे नहीं। क्योंकि लोकमें परमार्थ-विषयकी अन्यथा अथवा आत्मीय-धर्मकी मिथ्या देशना करनेवाले भी आप्तादिक होते हैं, जिन्हें प्राप्ताभास, आगमाभास आदि कहना चाहिये । स्वयं ग्रन्थकारमहोदयने अपने 'प्राप्तमीमांसा' ग्रंथमें ऐसे प्राप्तोंके अन्यथा कथन तथा ___x देखो, वामन शिवराम प्राप्टेके कोश-संस्कृत इंग्लिश डिक्सनरी तथा इंग्लिश संस्कृत डिक्सनरी। * आगमः शास्त्रागतो (विश्वलोचन), प्रागमस्त्वागतो शास्त्रेऽपि (हेमचन्द्र अभिधानसंग्रह); आगमः शास्त्रमाने (शब्दकल्पद्रुम)। - देखो, इसी ग्रन्थकी 'प्राप्तोपज्ञ' इत्यादि कारिका ६ तथा आप्तमीमांसाका निम्न वाक्य-~ “स त्वमेवामि निर्दोषो युक्तिशास्त्राविरोधिवाक् ॥६॥
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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