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________________ कारिका १] मंगलाचरण पदार्थ ज्योंके त्यों प्रतिभासित होते तथा तद्गत मालूम होते हैं और इस कार्यमें किसीकी भी कोई इच्छा चरितार्थ नहीं होतीवस्तुस्वभाव ही सर्वत्र अपना कार्य करता हुआ जान पड़ता है। इससे अधिक उसका यह आशय कदापि नहीं लिया जा सकता कि ज्ञान भी साधारण दर्पणकी तरह जड है, दर्पण-धातुका बना हुया है, दपणके समान एक पाश्वं ( Side ) ही उसका प्रकाशित है और वह उस पार्श्व के सामने निरावरण अथवा व्यवधानरहित अवस्थामें स्थित तात्कालिक मृर्तिक पदार्थको ही प्रतिबिम्बित करता है । ऐसा आशय लेना उपमान-उपमेय-भाव तथा वस्तुम्वभावको न समझने जैसा होगा। इसके सिवाय, दर्पण भी तरह तरहक होते हैं। एक सर्वसाधारण दर्पण, जो शरीरके ऊपरी भागको ही प्रतिबिम्बित करता है.--चम-मांसके भीतर स्थित हाड़ों आदि का नहीं; परन्तु दूसरा ऐक्स-रेका दर्पण चर्म-मांसके व्यवधान में स्थित हाड़ों आदिको भी प्रतिबिम्बित करता है। एक प्रकारका दर्पण समीप अथवा कुछ ही दूरके पदार्थोंको प्रतिबिम्बित करता है, दूसरा दर्पण (रेडियो आदिके द्वारा) बहुत दूरके पदार्थीको भी अपने में प्रतिबिम्बित कर लेता है। और यह बात तो साधारण दपणों तथा फोटा दर्पणीम भी पाई जाती है कि वे बहुतस पदार्थाको अपने में युगपत् प्रतिबिम्बित करलेते हैं और उसमें कितने ही निकट तथा दूरवर्ती पदार्थोंका पारस्परिक अन्तराल भी लुप्त-गुप्तसा हो जाता है, जो विधिपूर्वक देखनेस स्पष्ट जाना जाता है । इसके अलावा स्मृतिज्ञान-दर्पणमें हजारों मील दूरकी और वीसियों वर्ष पहलेकी देरखी हुई घटनाएँ तथा शक्लें (आकृतियाँ) साफ झलक आती हैं। और जाति-स्मरणका दर्पण तो उससे भी बढ़ा चढ़ा होता है, जिसमें पूर्वजन्म अथवा जन्मोंकी सैंकड़ों वर्ष पूर्व और हजारों मील दूर तककी भूतकालीन घटनाएँ साफ झलक
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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