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________________ प्रस्तावना ११६ श्रीसमन्तभद्र 'स्वामी' पदसे खास तौरपर अभिभूषित थे और यह पद उनके नामका एक अंग ही बन गया था । इसीसे विद्यानन्द और वादिराजसूरि जैसे कितने ही आचार्यों तथा पं० शारजी जैसे विद्वानोंने अनेक स्थानोंपर केवल 'स्वामी' पदके प्रयोग द्वारा ही उनका नामोल्लेख किया है । निःसन्देह यह पद उस समय की दृष्टिसे आपकी महती प्रतिष्ठा और असाधारण महत्ताका द्योतक है। आप सचमुच ही विद्वानोंके स्वामी थे, त्यागियोंके स्वामी थे, तपस्वियोंके स्वामी थे, योगियोंके स्वामी थे, ऋषि-मुनियोंके स्वामी थे, सद्गुणियों के स्वामी थे, सत्कृतियोंके स्वामी थे और लोक-हितैपियोंके स्वामी थे। आपने अपने अवतार से इस भारतभूमिको विक्रमकी दूसरी-तीसरी शताब्दी में पवित्र किया है। आपके अवतारसे भारतका गौरव बढ़ा है और इसलिये श्रीशुभचन्द्राचार्यने, पाण्डवपुराण में, आपको जो 'भारतभूषण' लिखा है वह सब तरह यथार्थ ही है । जुगलकिशोर मुख्तार वीरसेवामन्दिर, देहली माघसुदि ५, सं० २०११ * देखो, 'स्वामी समन्तभद्र' पृ० ६१ ( फुटनोट) 8 आजकल तो 'कवि' और 'पण्डित' पदोंकी तरह 'स्वामी' पदका भी दुरुपयोग होने लगा है । X समन्तभद्रो भद्रार्थो भातु भारतभूषणः । देवागमेन येनाss व्यक्तो देवागमः कृतः ॥
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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