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________________ १०२ समीचीन-धर्मशास्त्र है ? उनका अस्तित्व तो समन्तभद्रके सामने कुछ भी महत्त्व नहीं रखता।' वह पद्य, जो कविहस्तिमल्लके 'विक्रान्तकौरव' नाटकमें भी पाया जाता है, इस प्रकार हैअवटु-तटमटति झटिति स्फुट-पटु-वाचाट-धूर्जटेर्जिह्वा । वादिनि समन्तभद्रे स्थितिवति का कथाऽन्येषाम् ॥ यह पद्य शकसंवत १८५० में उत्कीर्ण हुए श्रवणबेल्गोलके शिलालेख नं ५४ (६७) में भी थोड़ेसे पाठ-भेदके साथ उपलब्ध होता है। वहाँ 'धूर्जटेर्जिह्वा' के स्थानपर 'धूर्जटेरपि जिह्वा' और 'सति का कथाऽन्येपां' की जगह 'तव सदसि भूप ! कास्थाऽन्येषां' पाठ दिया गया है, और इसे समन्तभद्रके वादारम्भ-समारम्भसमयकी उक्तियों में शामिल किया है । पद्यके उस रूपमें धूजटिके निरुत्तर होनेपर अथवा धूर्जटिकी गुरुतर पराजयका उल्लेख करके राजासे पूछा गया है कि 'धूर्जटि-जैस विद्वानकी ऐसी हालत होनेपर अब आपकी सभाके दूसरे विद्वानोंकी क्या आस्था है ?क्या उनमंसे काई वाद करने की हिम्मत रखता है ? (१२) श्रवणबल्गोलके शिलालेख नं० १०५ में समन्तभद्रका जयघोप करते हुए उनके सूक्तिसमूहको-सुन्दर प्रौढ युक्तियोंको लिये हुए प्रवचनको-वादीरूपी हाथियोंको वशमें करनेके लिये 'वज्रांकुश' बतलाया है और साथ ही यह लिखा है कि 'उनके प्रभावसे यह सम्पूर्ण पृथ्वी एक वार दुर्वादुकोंकी वार्तासे भी विहीन होगई थी-उनकी कोई बात भी नहीं करता था ।'-- समन्तभद्रस्स चिराय जीयाद्वादीभ-वज्रांकुश-सूक्तिजालः । यस्य प्रभावात्सकलावनीयं बंध्यास दुर्वादुक-वार्त्तयाऽपि ॥ ___ (१३) श्रवणबेलगोलके शिलालेख नं० १०८ में भद्रमूर्तिसमन्तभद्रको जिनशासनका ‘प्रणेता' (प्रधान नेता) बतलाते हुए यह भी प्रकट किया है कि 'उनके वचनरूपी वनके कठोरपातसे
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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