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________________ प्रस्तावना ६५ ETC... की प्रवृत्ति हुई है और जिसने सम्पूर्ण मिथ्याप्रवादको विघटित अथवा तितर बितर कर दिया है।' यथानित्यायेकान्तगर्तप्रपतनविवशान्प्राणिनोऽनर्थसार्थाद्उद्धत नेतुमुच्चैः पदममलमलं मंगलानामलंध्यम् । स्याहाट -न्यायवम प्रथयदवितथार्थ वचः स्वामिनोऽदः प्रेक्षावत्त्वात्प्रवृत्तं जयतु विघटिताऽशेषमिथ्याप्रवादम् ।। __ और दूसरे स्थान पर यह बतलाया है कि-'जिन्होंने परीक्षावानों के लिये कुनीति और कुप्रवृत्तिरूप-नदियोंको सुखा दिया है, जिनके वचन निर्दापनीति-स्याद्वादन्यायको लिये हुए होनेके कारण मनोहर हैं तथा तत्त्वार्थसमूहके संद्यातक है वे योगियोंके नायक, म्याद्वादमार्गक अग्रणी नेता, शक्ति-सामर्थ्यसे सम्पन्नविभु और सूर्य के समान देदीप्यमान-तेजस्वी श्रीस्वामी समन्तभद्र कलुपिन-प्राशय-रहित प्राणियोंको-सज्जनों अथवा सुधीजनोंको-विद्या और अानन्द-घनके प्रदान करनेवाले होवें उनके प्रसादसे ( प्रसन्नतापूर्वक उन्हें चित्तमें धारण करनेसे ) सबोंके. हृदयमें शुद्ध ज्ञान और यानन्दकी वर्षा होवे ।' जैसा कि निम्न पद्यसे प्रकट है--- येनाशेप-कुनीति-नि-सरितः प्रेक्षावतां शोपिताः यद्वाचोऽप्यकलंकनीति-रुचिरास्तत्त्वार्थ-सार्थद्युतः । स श्रीस्वामिसमन्तभद्र-यतिभृद्भूयाद्विभुर्भानुमान् विद्याऽऽनन्द-घनप्रदोऽनघधियां स्याद्वादमार्गाग्रणीः॥ साथ ही, तीसरे स्थान पर एक पद्य-द्वारा यह प्रकट किया है कि-'जिनके नय-प्रमाण-मूलक अलंध्य उपदेशसे-प्रवचनको सुनकर-महा उद्धतमति वे एकान्तवादी भी प्रायः शान्तताको
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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