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________________ प्रस्तावना यह पद्य 'हरितपिधाननिधाने' नामक उस पद्य (नं० १२१) के बाद दिया है जो कि वैय्यावृत्त्यके अतिचारोंको लिये हुए है। इसमें ज्ञान, अभय. अन्न और औषध नामके चार दानोंका फल दिया है, जिनका फल 'आहारौषध' नामके पाके अनन्तर 'उक्तं च' रूपसे दिये हुए ३-४ पद्योंमें एक दो बार पहले भी आगया है अतः इसग भी ग्रन्थके साहित्य-संदर्भ तथा उसकी प्रकृति आदिके साथ कोई मेल नहीं है, इसलिये यह वैमे ही साफ़ तौर पर प्रक्षिप्त जान पड़ता है और किसी दूसरे ग्रन्थका पद्य है। जाँचका साराश-- इस लम्बी-चौड़ी जाँचका सारांश सिर्फ इतना ही है कि (१) ग्रन्थकी दो प्रकारकी प्रतियाँ पाई जाती हैं-एक तो वे जो संस्कृत-टीकावाली प्रतिकी तरह डेढ़सौ श्लोक-संख्याको लिये हुए हैं और दूसरी वे जिन्हें ऊपर 'अधिक पद्योंवाली प्रतियाँ' सूचित किया है। तीसरी प्रकारकी ऐसी कोई उल्लेखयोग्य प्रति अभी तक उपलब्ध नहीं हुई जिसमें पद्योंकी संख्या डेढसौसे कम हो । परन्तु ऐसी प्रतियोंके उपलब्ध हानेकी संभावना बहुत कुछ है। उनकी तलाशका अभी तक कोई यथेष्ट प्रयत्न भी नहीं हुआ, जिसके होनेकी जरूरत है। (२) ग्रन्थकी डेढ़सौ श्लोकोंवाली इस प्रतिके जिन पद्योंको क्षेपक बतलाया जाता है अथवा जिन पर क्षेपक हानेका सन्देह किया जाता है उनमेंस 'चतुराहारविसर्जन' और दृष्टान्तोंवाले पद्योंको छोड़कर शेष पद्योंका क्षेपक होना युक्तियुक्त मालूम नहीं होता और इसलिये उनके विषयका सन्देह प्रायः निराधार जान पड़ता है। (३) ग्रन्थमें 'चतुराहारविसर्जन' नामका पद्य और दृष्टान्तोंवाले छहों पद्य, ऐसे सात पद्य, बहुत कुछ संदिग्ध स्थितिमें पाये जाते हैं। उन्हें ग्रन्थका अंग मानने और स्वामी समन्तभद्रके
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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