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________________ कुटुम्बमें विवाह | ६३ उल्लेख करना तो रहहीं गया, और वह यह है कि उन्होंने, लेखक पर इस बात का प्रक्षेप करते हुए कि उसने भाषाके छदोषद्ध 'श्राराधना कथाकोश' के कथन पर जान बूझ कर ध्यान नहीं दिया, यह विधान किया है कि उसने उक्त ग्रंथका स्वाध्याय अवश्य किया होगा, क्योंकि वह उसके खास गाँव (?) देवबन्द का छपा हुआ है। और इस तरह पर यह घोषणा की है कि जिस नगर या ग्राम में कोई ग्रंथ छपता है वहाँका प्रत्येक पढ़ा लिखा निवासी इस घातका जिम्मेवार है कि वह ग्रंथ उसने पढ़ लिया है और वह उसके सारे कथनको जानता है । शौर इसलिये बम्बई, कलकत्ता आदि सभी नगर ग्रामों के पढ़े लिख को अपनी इस जिम्मेदारी के लिये सावधान हो जाना चाहिये ! और यदि किसीको यह मालूम करनेकी ज़रूरत पड़े कि बम्बई में कौन कौन ग्रन्थ छपे हैं और उनमें क्या कुछ लिखा है तो वहाँ किसी एक ही पढ़े लिखेको बुलाकर अथवा उससे मिलकर सारा हाल मालूम कर लेना चाहिये ! यह कितना भारी श्राविष्कार समालोचकजीने कर डाला है ! और इससे पाठकों को कितना लाभ पहुंचेगा !! परन्तु खेद है लेखक तो कई बार अपने अनेक स्थानोंके मित्रोंको वहाँके छपे हुए ग्रंथोंकी बाबत कुछ हाल दर्याफ्त करके ही रह गया और उसे यही उत्तर मिला कि 'हमें उन प्रन्थोंका कुछ हाल मालूम नहीं है ।' शायद, समालोचकजी हां एक ऐसे विचित्र व्यक्ति होंगे जिन्होंने कमसे कम *यथाः——बाबू साहबके खास गाँव देववन्दमै जो 'श्राराधनाकथाकोश' छपा है उससे भी यह सदेह साफ तौर से काफूर होजाता है क्या बाबू साहबने अपने यहाँ से प्रकाशित हुए ग्रन्थों का भी स्वाध्याय न किया होगा? किया अवश्य होगा परन्तु उन्हें तो जिस तिस तरह अपना मतलब बनाना है" ।
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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