SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुटुम्बमें विवाह । पं० दौलतरामजीकी भाषाटीका पर आक्षेप करते हैं वे स्वयंभी ऐसा गलत अथवा मिलावटको लिये हुए अनुवाद प्रस्तुत कर सकते हैं यह बड़े ही खेदका विषय है ! पं० दौलतरामजीने तो अपनी भाषा वचनिकामें इतनाही लिखा है कि "राणी नंदिय. साका जीव यह देवकी भई" और वह भी उक्त पद्यकी टोकामें नहीं बल्कि अगले पच की टीकाम वहाँ उल्लेखित 'देवकी' का पूर्वसम्बंध व्यक्त करने के लिये लिखा है x परन्तु गजाधरलालजी ने इसपर अपनी ओरसे देवकीके माता पिता और उत्पत्ति स्थानके न.मोकी मगजी भी चढादी है, और उसमें दशार्ण नगरसे पहले उनका 'इस' शब्द का प्रयोग और भी ज्यादा खटकना है; क्योंकि देवकी और वसुदेवजीसे यह सब कथा कहते हुर अतिम कक मुनि उस समय दशाण गरमें उपस्थित नहीं थे बल्कि मथगके पासके सहकार वनमें उपस्थित थे इसलिये उनकी पोरसे 'इस' श्राशय के शब्द का प्रयोग नहीं बन सकता। परन्तु यहाँपर अनुवाद की भले प्रकट करना कोई इष्ट नहीं है: मैं इस कथन परसे सिर्फ इतनाही यतलाना चाहता हूं कि जिस घातको समालोच जाने बड़े दर्पके साथ लेखकको दिखलाना चाहा था उसमें कुलभो सार नहीं है । वह जिनसेनाचार्य के हरिवंशपुराणसे बाहर की चीज है और इसलिय उसके आधार पर कोई आपत्ति नहीं की जासकती। समालोचकजीके सामने +देखा गजाधरलाल जीके भाषा हरिवंशपुराणकी प्रस्तावना का पृष्ठ नं० २। ___x यथाः-तहाँ ते चयकरि रेवती धायका जीव भहलपर विषै सुहाटे नामा सेठकै अल्का नामा स्त्री है ॥ ६७ ॥ अर राणी नंदियसाका जीव यह देवकी भई ताकै वे गंगदेव आदि पूर्वले पुत्र स्वगत चयकरि याजन्मविषै भी पुत्र होइंगे॥" १६ ॥
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy