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________________ द्वि० लेखका उद्देश्य और उसका स्पष्टीकरण । २६ रखलो परन्तु उसके साथ विवाह मत करा; और यदि तुम्हारे फेल (कर्म) से किसी विधवाको गर्भ रहजाय तो खुशीसे उसकी भ्रूणहत्या कर डालो अथवा बालकको प्रसव कराकर उसे कहीं जंगल आदिमें डाल श्राओ या मारडाला परन्तु खले रूपमे जातिबिरादरीके सामने यह बात न आने दो कि तुमने उस विधवा के साथ सम्बंध किया है, इसी में तुम्हारी खैर है-मुक्ति है और नहीं तो जातिसे खारिज कर दिये जानोगे। जाति-विरा. दरियो अथवा पंचायतों की ऐसी नीति और व्यवहारके कारण ही आजकलमारत वर्षका और उसमें भी उच्च कहलाने वाली जातियोंका बहुतही .ज्यादा नैतिक पतन होरहा है । ऐसी हालत में पापियोंका सुधार और पतितोका उद्धार कौन करे, यह एक बड़ी ही कठिन समस्या उपस्थित है!! __ एक बात और भी नोट किये जाने के योग्य है और वह यह कि यदि कोई मनुष्य पाप कर्म करके पतित होता है तो उसके लिये इस बातकी खास जरूरत रहती है कि वह अपने पापका प्रायश्चित करने के लिये अधिक धर्म करे, उसे ज्यादा धर्मकी ओर लगाया जाय और अधिक धर्म करने का मौका दिया जाब परन्तु श्राजकल कुछ जैन जातियों और जैन पंचायतोंकी ऐसी उलटी रीति पाई जाती है कि वे ऐसे लोगोंको धर्म करने से रोकती हैं-उन्हें जिनमंदिरों में जाने नहीं देती अथवा वीतराग भगवानकी पूजा प्रक्षाल नहीं करने देती और और भी कितनी ही आपत्तियाँ उनके धार्मिक अधिकारों पर खड़ी करदेती हैं। समझमें नहीं पाता यह कैसी पापोंसे घणा और धर्मले प्रीति अथवा पतितोके उद्धारकी इच्छा है !! और किसी बिरादरी या पंचायतको किसीके धार्मिक अधिकारोंमें हस्तक्षेप करने का क्या अधिकार है !! जैनियों में 'अविरत सम्यग्दृष्टि' का भी एक दर्जा (चतुर्थ
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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