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________________ १४२ विवाह-क्षेत्र-प्रकाश । ही होते थे, वसुदेवजी उन्हीं बाजा बजाने वाले राजाओंमें जाकर बैठ गये थे* वह कितनी विलक्षण तथा निःसार मालूम होती है। आपने राजाओंको अच्छा पाणविक बनाया और उन्हें खूब वाजंत्रीका काम दिया ! और एक वाजंत्री ही का काम क्या, जब स्वयंवरमें राजाओं तथा राजकुमारों के सिवाय दूसरेका प्रवेश ही नहीं होता था तबतो यह कहना चाहिये कि पानी पिलाने, जूठे बर्तन उठाने और पंखा झोलने श्रादि दूसरे सेवा चाकरीके कामों में भी यहाँ राजा लोगही नियुक्त थे ! यह श्रागन्तुक राजाओंका अच्छा सम्मान हुा!मालूम नहीं रोहिणी के पिताके पास ऐसी कौन सी सत्ता थी जिससे वह कन्याका पणिग्रहण करने की इच्छासे आए हुए राजाओको ऐसे शूद्र कर्मों में लगा सकता! जान पड़ता है यह सब समालोचकजीकी कोरी कल्पनाही कल्पना है,वास्तविकतासे इसका कोई सम्बंध नहीं। ऐसे महोत्सवके अवसर पर आगन्तुक जनोंके विनोदार्थ और मांगलिक कार्योंके सम्पादनार्थ गाने बजानेका काम प्रायः दूसरे लोगही किया करते हैं, जिनका वह पेशा होता हैस्वयंवरोत्सवकी रीति नीति, इस विषयमें, उनसे कोई भिन्न नहीं होती। इसके सिवाय,समालोचकजी एक स्थान पर लिखते हैं: "रोहिणीने जिस समय स्वयंवरमण्डपहैं किसी राजाको नहीं वरा और धायसे बात चीत कर रहीथी उस समय मनोहर वीणाका शब्द सुनाई पड़ा"। ___ *यथाः- "स्वयंवर मंडपमें सब राजाही लोग पाया करते थे और जो इस योग्य हुआ करते थे उन्हींको स्वयंवर मंडप में प्रवेश किया जाता था।" "उन्होंने [वसदेवने स्वयंवरमंडपमें प्रवेश किया और जहाँ ऐसे राजा बैठे हुए थे जोकि वादिनविद्याविशारद थे उन्होंमें जाकर बैठ गए।"
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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