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________________ म्लेच्छोसे विवाह । ११५ भत भी बतलाते हैं और फिर यह भी कहते हैं कि वे हिंसा तथा मांसभक्षणादिकसे अलिप्त हैं-उनमें ऐसे पापों तथा कदाचरणों की प्रवृत्ति ही नहीं ! ! वाह ! क्या खष !! समालोचक जीकी इस समझ पर एक फार्सी कवि का यह वाक्य बिलकुल चरितार्थ होता है: “वरी अक्लोदानिश बबायद गरीस्त ।" अर्थात-ऐसो बुद्धि और समझ पर रोना चाहिये । आप लिखते हैं : यदि वे [म्लेच्छ नीच होते तो 'उनके अन्य सब प्राचरण श्रार्यखण्डके समान होतेहैं' ऐसा प्राचार्य कभी नहीं लिखते।" परन्तु खेद है आपने यह समझने की जरा भी कोशिश नहीं की कि वे आचरण कौनसे हैं और उन की समानतासे क्या वह नीचता दूर होसकती है। इसी देश में भी जिन्हें आप नीच समझते हैं उनके कुछ आचरणोंको छोड़ कर शेष सब आचरण ऊंचसे ऊँच कहलानेवाली जातियों के समान है। तब क्या इस समानता परसे ही वे ऊच होगये और आप उन्हें ऊँच मानने के लिये तय्यार है ? यदि समानता का ऐसा नियम हो तब तो फिर कोई भी नीच नहीं रह सकता और श्री विद्यानन्दाचार्यन गलती की जो म्लेच्छके नीच गोत्रादिका उदय बतला दिया। परन्तु ऐसा नहीं है: वास्तवमें ऊँचता और नीचता खास खास गण दोषा पर अवलम्बित होती है-दूसरे पाचरणों की समानतासे उसपर प्रायः कोई असर नहीं पड़ता। लेखकने, यद्यपि, अपने लेख में यह कहीं नहीं लिखा था कि जर। 'नीच थी,' जैलाकि समालोचकजाने अपने पाठकों को सुझाया है किन्तु उसके पिताकी बाबत सिर्फ इतना ही लिखा था कि 'वह श्राय तथा उच्च जातिका मनष्य नहीं था, फिर भी समालोचक जी ने, जराकी नीचताका निषेध करते हुए,
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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