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________________ उद्देश्य को अपलाप श्रादि । हवस पूरी करना है उन्हें इतनी लम्बी समझ से क्या काम," (ए०४५-४६) (६) "बाबू साहब ने जो चारुदत्त की कथा से वेश्या तक को घरमें डाल लेने की प्रवृत्ति चलाना चाहा है यह प्रवृत्ति सर्वथा धर्म और लोक विरुद्ध है । ऐसी प्रवृत्ति से पवित्र जैन धर्म को कलङ्क लग जायगा " (पृ० ४६) (७) "लाला जौहरीमल जी जैन सर्राफ सरीखे कुछ मन चले लोगोंने .. ... बाबू जगलकिशोर जी के लिख अनुसार "गहस्थ के लिये स्त्री की जरूरत होने के कारण चाहे जिसकी कन्या ले लेनी चाहिये" इसी उद्देश्य को उचित समझा" (भूमिका ) अब देखना चाहिये कि, इन सब वाक्योंके द्वारा पस्तक के प्रतिपाद्य विषय, आशय, उद्देश्य और लेखकके तज्जन्य विचारों आदि के सम्बन्ध में जो घोषणा की गई है वह कहाँ तक सत्य है-दोनों लेखों परसे उसकी कोई उपलब्धि होती है या कि नहीं-और यह तभी बन सकता है अथवा इस विषय का अच्छा अनभव पाठकों को तभी हो सकता है जबकि उनके सामने प्रत्येक लेखका वह अंश मौजद हो जिसमें उस लेखके उदाहरण का नतीजा निकाला गया या उससे निकलने वाली शिक्षा को प्रदर्शित किया गया है। अतः यहां पर उन दोनों अंशोका उ द्धन किया जाना बहुत ही जरूरी जान पड़ता है। __ पहले लेखमें, धसदेव जी के विवाहों की चार घटनाओं का--देवकी, जरा, प्रियंगसन्दरी और रोहिणी के साथ होने पाले विवाहों का उल्लेख करके और यह बतला कर कि ये चारों प्रकार के विवाह उस समय के अनुकूल होते हुए भी आज कल की हवाके प्रतिकूल हैं, जो नतीजा निकाला गया अथवा जिस शिक्षा का उल्लेख किया गया है वह निम्न प्रकार
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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