SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना mararmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm संद्योतन किया है। वीरजिनकी महानताका संद्योतन जिस रूपमें किया गया है उसका पूर्ण परिचय तो पूरे ग्रन्थको बहुत दत्तावधा. नताके साथ अनेक वार पढ़ने पर ही ज्ञात हो सकेगा,यहाँ पर संक्षेपमें कुछ थोडासा ही परिचय कराया जाता है और उसके लिये ग्रन्थकी निम्न दो कारिकाएँ खास तौरसे उल्लेखनीय है - त्वं शुद्धि-शक्त्योरुदयस्य काष्ठों तुला-व्यतीतां जिन ! शान्तिरूपाम् । अवापिथ ब्रह्मपथस्य नेता महानितीयत्प्रतिवक्तुमीशाः ॥४॥ दया-दम-त्याग-समाधि-निष्ठं नय-प्रमाण-प्रकृताऽऽञ्जसार्थम् । अधृष्यमन्यैरखिलैः प्रवादैजिन ! त्वदीयं मतमद्वितीयम् ॥६॥ इनमेंसे पहली कारिकामे श्रीवीरको महानताका और दूसरीमें उनके शासनकी महानताका उल्लेख है। श्रीवीरकी महानताको इस रूपमे प्रदर्शित किया गया है कि 'वे अतुलित शान्तिके साथ शुद्धि और शक्तिको पराकाष्ठाको प्राप्त हुए है-उन्होंने मोहनीयकर्मका अभाव कर अनुपम सुख-शान्तिकी, ज्ञानावरण-दर्शनावरणकर्मोका नाशकर अनन्त ज्ञान-दर्शन रूप शुद्धिके उदयकी और अन्तराय-कर्मका विनाशकर अनन्तवीर्यरूप शक्तिके उत्कर्षकी चरमसीमाको प्राप्त किया है-और साथही ब्रह्मपथके-अहिसात्मक आत्मविकासपद्धति, अथवा मोक्षमार्गके वे नेता बने हैं-उन्होने अपने आदर्श एव उपदेशादि-द्वारा दूसरोंको उस सन्मार्गपर लगाया है जो शुद्धि, शक्ति तथा शान्तिके परमोदयरूपमें आत्म
SR No.010665
Book TitleYuktyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages148
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy