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________________ ( २० ) महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी कृत. भाव गयस्स समाणस्स के० पांच प्रकारनी पर्याप्ति पर्याप्तिभाव म्या थकाने एटले देबताने भाषा अने मन ए वे पर्याप्ति साथै नीपजे छे, माटे पांच कही. इमेयारूवे के० एवा प्रकारनो अज्झत्थिए पत्थिए के० मनमां मार्थ्यो. मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था के० मनो गत संकल्प उपन्यो ते कहेछे, किं मे पुवि सेयं के०भुं मारे पूर्वे श्रेयकारी ? किं मे पच्छा सेयं के० शुं मारे पछी श्रेयकारी ? किं मे पुत्रि पच्छावि के० शुं मारे पूर्वे अने पछी हियाए के० हितकारी पथ्य आहारनी पैरे, सुहाए के० सुखने अर्थे, खमाए के० सगतने अर्थे, खेमने अर्थे, निसेसाए के० निश्रेयस जे मोक्ष तेने अर्थे, आणुगामियत्ताए के० अनुगमन करे ? एटले परंपराए शुभानुबंधी भविस्सर के० थशे ? नए णं सरियाभस्सदेवस्स सामाणिय परिसोवन्नगादेवा के० ते वारे ते मूरियाभदेवना सामानिक पर्पदामां उपन्या देवता ते, सरियाभस्स इमेयाखवं अज्झत्थियं समुप्पन्नं समभिज्जाणित्ता के सूर्याभदेवतानो एवो अभिप्राय उपन्यो जाणीने, जेणेव सूर्यामे देवे के ज्यां सूर्याभदेवता छे. तेणेव उवागच्छति के० त्यां अवे. सूरियामं देवं के० सूर्याम देवने, करयलपरिग्गहियं के० हाथ जोडीने, दसन सिरसावत्तं मत्थए अंजली कहु के० दश नख भेला करी, मस्तके भाव करी अंजली करीने, जएणं के० जये करीने स्वपक्षनो जय, विजएणं के० परपक्षनो जय ते विजय कहिए. तेणे बघावे, वधावीने, एवंवयासी के० एम कहे. एवं खलु देवाणुप्पियाणं के० खलु नाम निश्वये हे देवानुप्रिया सूर्यामे विमाणे के० सूर्याभ नामा विमानने विषे सिद्धायतणे के सिद्धनुं घर एटले देहेरुं, ते देहेराने विषे जिणपडि याणं के० जिनेश्वरनी प्रतिमा छे, ते प्रतिमा केवी छे ? जिणुस्सेहपमाणमित्तानं के० तीर्थंकरना उत्सेष उंचत्व प्रमाण मात्र छे. अनुसयं सन्निखित्तं चिह्न के० एकशोने आठ थापना छे, तथा सभाषणं सुहम्मारणं के० सुधर्मनामा समाने विषे माणवर चेइयखंभे के० माण चकनामा चैत्यस्तंभ छे, ते स्तंभने विषे वहरामएस गोलबट्टसमुग्गएसु के० वज्रमय गोलवृत्त डावडा छे. तेमां बहुओ के० घणां, जिणसकहाओ के जिननां सकहा शब्दे अस्थि छे. सन्निखित्ताओ चिति के० थापनाए छे, ताओ णं के० ते जिनमतिमा तथा जिणसकहाओ ते देवाणुप्पिया णं के० हे देवानुप्रिय तमने तथा अन्नेसिं के० वीजा पण सम्यग् दृष्टि वैमाणियाणं देवाणं देवीणय के० वैमानिक देवता देवीओने, अञ्च्चणिज्जाओ के० अर्चना योग्य छे. जाव पज्जुवासणिज्जाओ के व्यावत् सेवा करवा योग्यछे. अहींयां यावत् शब्दे बंदणिज्जाओ सम्माणणिज्जाओ इत्यादिक कहेतुं तं एयणं देवाणुप्पिया णं इत्यादिक सुगम छे. भावार्थ ए छे. के, ए तमने पूर्वे करवा योग्यछे, पछी करवा योग्यछे, ए तमने पूर्वे तथा पछी हितकारी सुखने अर्थ, क्षेमने अर्थे, मोक्षने अर्थ अने शुभानुबंधने अर्थे याशे. अर्हियां केटलाएक कुमति कहे छे के, "ए देवतानी स्थिति छे. " तेहनो उत्तर जे, सूत्र पाठमां ॥ अन्नेसिं बहूणं वेमाणियाणं ॥ इति बहु पद शुं करवा कर्छु ? | सन्वेसिं मणिया | वो पाठ कां न कह्यो ? तेज माटे जाणिए छैए जे, ए सर्व देवतानो
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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