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________________ (८) महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी कृत. ___ अर्थ-जेम अनीव संथमनुं साधन के. जेम वस्त्र पात्रादिक अजीव छे, पण ते संयम के चारित्रनां साधन छे. एयी चारित्र सपाय छे. ज्ञानादिकनुं तेम के० तेमज स्थापनाजे ब्राीलिपि तथा जिनपतिमा प्रमुख, ज्ञाननो तथा दर्शन शुद्धि प्रमुखनो हेतु थाय, ते मारे शुद्धभाव आरोपे विधिसुं के विधिपूर्वक पोतानो जे शुभाध्यवसाय तेजें आरोपण सामी वस्तुने विषे करे, तेहने के० ते माणीने सघले खेम के० सर्व ठेकाणे मंगलीक छे. इति भाव इति गाथार्थ ॥ ११ ॥ __ ते उपर सूत्र लखीए छैए-"ते महाफलं खलु अरहताण भगवंताणं नामगोयमस्स वि . सवणयाए ।" अहींयां ए आलावे नामनिक्षेप ते महाफलदायक कहो. तथा-"धनाणं ते गामागरनगरखेडकव्वडमंडवदोणमुहपट्टणासमसंवाहसनिवेसा जत्थ अरिहंता भगवंता विहरति" ए आलावामा प्रामादिकने धन्य कां. ते पण श्री अरिहंतनीज मशंसा थइ. तथा वली श्रीश्रमणसूत्र प्रमुख घणा सूत्रोमां तेत्रीश आशातना मध्ये गुरु संबंधी पाटी पीठ संथारे पग संघटतां आशातना लागे. ए सर्व वस्तुओअजीव छे. तोपण पोताने विशेषे आराघवा योग्य कहीओ, तेतो तुं पण मानेछे, तो पछी जिनपतिमा ब्राझीलिपि प्रमुख अजीव केम नथी मानतो ? तथा वली श्री अंतगडदशांगमा मुलसाना अधिकारे हरिणेगमेषीनी पतिमा आराधने ते हरिणेगमेषी आराध्य हतो, तेथी ते हरिणेगमीषी संतुष्ट थयो, तेम वीतरागनी प्रतिमा आराधने वीतराग आराध्य केम न थाय ? थायज. अहींयां कोइ कहेशे के, जेम हरिणेगमेषी संतुष्ट थयो तेम श्री वीतराग पण ए दृष्टांते तो संतुष्ट थवा जोइशे. तेनो उत्तर जे दृष्टांत होय ते तो एक देशे होय, ते माटे अहींयां आराध्यरूप देश लीपो छे एटले ए भाव जे वीतराग छे माटे काइ संतुष्ट न थाय पण आराध्य तो थायज. एवं सम्यकदृष्टिए विचारवं. वली भावजिन पण आराध्यफल देछे. तेमां पण बे वात छे. जे भावजिनने देखे छे ते पण पुदलपिंड आकार रूप देखे छे, ते तो थापना छे, ए पण उडो आलोच करी विचारजो. वीजुं भावजिन छवा होय त्यांपण पोतानो भाव निमल होय तो फल आपे. जो पोताना भाव विना फल आपे तो अभव्य अने दरभव्यनेज फल आपq जोइए, ते माटे निजभाव तेज प्रमाण छे. तेम थापना जिनने विषे पण जाणवू. ___ अहींयां पोतानो भाव प्रमाण को, वेमा कोइकने आशंका उपजे के सामी वस्तु जेवी होय तेवी हो पण पोतानो भावज प्रमाण छे. तेने कहे छे के एम नहीं ते उपर गाथा कहे छे. शुद्धभाव जेहनो छे तेहना, चार निक्षेपा साचा । जेहमां भाव अशुद्ध छे तेहना, एक काचे सवि काचारे॥जि०॥तु०१२॥ ___ अर्थ-शुद्ध भाव जेहनो छे के जे वस्तुनो भावनिक्षेपो शुद्ध छे. तेहना चारे निक्षेपा साचा छे. गौतमादिकनी परे. एटले ए भाव जे गौतमजीनो भावनिक्षेपोआराध्य साचो
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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