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________________ (80) महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी कृत. हुं करता परंभावनों, एम जेम जम जाणे तेम तेम अज्ञानी पडे, निजं कर्मने घाणे ॥ आतम० ॥ ३४ ॥ व्याख्या–हुँ परंभावना के० पुगलभावनो कर्त्ता छु, एम जेम जेम जाणे छे, तेम तेम ते अज्ञानी जीव, निज के पोताना कर्मने घाणे पडे छे. एटले कर्तृत्वाभिमानजनित कर्मे बंषाय छे. ॥ ३४ ॥ ते अज्ञान नय विभागे टले ते देखाडे छे. पुद्गल कर्मादिकतणी, करता व्यवहारे । करता चेतन करमनो, निश्चय सुविचारे ॥ आतम० ॥ ३५ ॥ व्याख्या - व्यवहार नयनी अपेक्षाए ज्ञानावरणीयादिक पुगल कर्मादिक भावनो कर्ता चेतन छे. तिहां अनुपचरितासभूत व्यवहारे कर्मनो कर्ता, अने उपचरितासद्द्भुत व्यवहारे गृहादिकनो कर्त्ता, ए विशेष. तथा स्वजात्युपचरितासद्भूत व्यवहारे पुत्रादिकनो कर्ता, अने विजात्युपचरिताद्भूत व्यवहारे धनादिकनो, स्वजाति विजात्युपचरितासभूत व्यवहारे नगर प्राकारादिकनो, इत्यादिक भेद जाणवो. निश्चय नयने सुविचारे चेतन कर्म जे राग द्वेष तेहनो कर्ता छे. जे माटे अशुद्ध निश्चय नय अशुद्ध स्वभाव कर्ता माने. द्रव्य कर्म ते ए नये अनुषंगे आवे छे. जेम तैलाभ्यंग कर्ता पुरुषने रज तैल्याभंगंने अनुषंगे आवे छे. उक्तंच - "तैलाभ्यगे शरीरस्येत्यादि " ॥ ३५ ॥ कर्ता शुद्ध स्वभावनो, नय शुद्धे कहीए । कर्ता पर परिणामनी, बेंड किरिया ग्रहीए ॥ अ० ॥३६॥ व्याख्या - शुद्ध निश्रयं नये शुद्ध स्वभावनोज कर्ता आत्मा कहीए. परपरिणामनो कर्ता मानतीं वे क्रिया ग्रहिए. वे क्रिया आवी जाय, एक जीव क्रिया अने वीजी अजीवक्रिया. एम मानता तो अपसिद्धांत यार्य, तें माटे शुद्ध स्वभावनोज कर्ता मानीए ॥ ३६ ॥ ॥ ढाल चोथी ॥ ॥ वीरमतो प्रीति कारणी - ए देशी. ॥ शिष्य कहे जो परभावनो, अकर्त्ता को प्राणी । दान हरणादिक केम घटे, कहे सदगुरु वाणी ॥ शुद्ध नय अर्थ मन धारी ॥ ए आँकणी ॥ ३७ ॥
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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