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________________ आवरणिनाणं दुहपि, वेयणिज्जे तहेव या अंतराए य कम्ममि, ठिई एसा वियाहिया||२||" इत्युत्तराध्ययन अध्ययन ३३ मा मध्ये कयुं छे. वली तेज वेदनी कर्मनी वार मुहूर्त जधन्य स्थिति श्रीपनवणामूत्र मध्ये कही छे. यथा-"सायावेयणिज्जस्स इरियावहियवंधगं पडुच्च जहन्नमणुकोसेणं दो समया, संपराइयवंधगं पडुच्च जहन्नेणं वारसमुहुत्ता उक्कोसेणं पणरस सागरोवमकोडाकोडीओ।" इत्यादिक पनवणा मध्ये कर् तो वे उत्तराध्ययननी साथे मल्यु नहीं मारे विरोध ते तो अन्य के० जुदीज वात छे ॥२४॥ अनुयोगदारें कह्या, जघन निखेपा चार; जि० । जीवादिक तो नवि घटे, द्रव्य भेद आधार जितुझ०२५|| अर्थ-वली श्रीअनुयोगद्वारसूत्रने विष एम को छे के जे वस्तुना जेटला निक्षेपा करवानी तारी बुद्धि थाय ते वस्तुना तेटला निक्षेपातु तिहां करजे पण कदाचित घणा निक्षेपा तुं न जाणे विहां पण चार निखेपा तो अवश्य करजे एटले एम आव्यु जे जघन्यथी चार निक्षेपा तो सर्वत्र करवा पण चारथी ओछा वो होयज नहीं १ नाम २ स्थापना ३ द्रव्य ४ भाव ए चार अवश्य करवा. यत:-"जत्य यजंजाणिज्जा, निक्खे निक्खे निरवसेस। जत्यवि य न जाणिजा, चउक्कय निक्खेवे तत्थ ॥१॥" इत्यनुयोगद्वारसूत्रे. तेवारे जिवादिक गन्दना निक्षेपा नवि घटे के० घटे नहीं शामाटे जे द्रव्य निक्षेपो भेद आधार के० भिन्न आधारें थाय खेमके जे भावनुं कारण ते द्रव्य ते वारे जीवनो द्रव्य निक्षेपो केम थाय जे भाव जीव थवानुं कारण होय ते द्रव्यजीव कहेवाय ते तो ज्ञानादिक गुणे हीण तो जीव होय नहीं-"दवं पज्जवविजुत्त, दवविजुयाय पन्जवा नत्थि ।" इति वचनात् ते माटे मंडूकनी जटाना भारनी पेठे समस्त धर्म रहित कोइ पदार्थज नथी तो ए द्रव्यनिक्षेप जीवादिकमां शून्य छे आदि शब्दयी वीजा पण जीवादिक लीजीये जेम द्रव्यदेव मनिराजने कहिये तेम द्रव्यजीव कोने कहेशो तेना समाधान तो पंचांगी प्रमुखथी नीकले अत्रार्थे तत्वार्थ चि जोजो ॥ २५ ॥ एम वहुवचन नयंतरें, कोइ वाचना भेद; जि०।। एम अर्थे पण जाणीयें, नवि धरीयें मन खेद ॥जिन्तुझ०२६॥ अर्थ-ए रीते बहु के० घणा सइकडोगमे वचनविरोध अल्पबुद्धिवालाने लागे एवा पाठ मूत्र मध्ये छे ते कोइ स्थानकें नयभेद भेटें व्याख्या होय अने कोइ स्थानकें वाचनाभेद के. वल्लभी तथा मथुरी ए वे वाचना थइ तेथी भेद थयो एम उपलक्षणथी मतांवर प्रमुख लिपि दोप पण लइये एवी रीते जेम मूत्रमा भेद छे तेमज अर्थ के० टीका प्रमुखने विषे पण नयांतरे करी वाचनांतरे करी कोइ स्थानके भेद आवे ते माटे टीका प्रमुख देखीने मनमा खेद न धरी भूत्र तथा अर्थ वरावर छे ॥२६॥
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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