SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ : (५८) जिनपूजा अपवाद पदादिक, शीलत्रतादिक जेम । पुण्य अनुत्तर मुनिने आपी, दिए शिवपद बहु खेम ॥ मन०१४ ॥ अर्थ- वली जेम पूर्वे मुनिने हिसा स्वरूपथी हवी ते अनुबंधे अहिंसा कही तेमज जिन पूजा तथा अपवाद पदादिकें वर्चता मुनि वली शीलव्रतादिक जेम सुनिने अनुत्तर के० उत्कृष्ट पुण्य आपीने एटले ए जिनपूजादि करणी यद्यपि किश्चित मात्र स्वरूपथी सावध छे अने शीलत्रतादिक ते स्वरूपथी निरवद्य छे पण ए बेहु भेदवालाने अनुबंधे अहिंसालुंज फल आपे ते माटे एम कहुं जे अनुत्तर पुण्य आपीने दिए के० आपे शिवपद के० मोक्षपद जे बहु खेम के० घणुं क्षेम छे जिहां एटले परंपरायें सर्वसिद्धनुं देनार छे ॥ १४ ॥ एह भेद विण एक अहिंसा, नवि होवे थिर थंभ | यावत योग क्रिया छे तावत, बोल्यो छे आरंभ ॥ मन० १५ ॥ अर्थ-ए प्रकारे १ हेतु २ स्वरूप ३ अनुबंध ए त्रण भेदे हिंसा तथा ए त्रण भेदे अहिंसा ते जाण्या विना एकलीज अहिंसा सामान्य प्रकारें माने ते नवि होवे के० न होय थिरथंभ के० थिरभावे एटले एकली अहिंसा ठेरे नहीं, शामाटे के याचत योग क्रिया छे के० ज्यां लगे मन वचन कायाना योगनी क्रिया ते चलन क्रिया छे तावत के० तिहांलगें बोल्यो छे के० को छे आरंभ के कर्मबंध एटले पोतपोताना गुणठाणानी मर्यादा माफक तेरमा गुणवाणा लगे कर्मबंध छे अन्यथा इरियापथिकवंघ वे समयनी स्थितिनो केम को छे ते माटे एकली अहिंसा कहेवी ते काम न आवे पण तेना भेद समजे तो सर्व ठेकाणे जोडे ॥ १५ ॥ लागे पण लगवे नहि हिंसा, मुनि ए माया वाणी । शुभ किरिया लागी जे आवे, तेमां तो नहि हाणी ॥ मन० १९६ ॥ छे अर्थ - इहां कोइक एम कहे छे जे मुनि के० मुनिराजने विहारादिक करतां हिसा लागे पण लगाने नहीं एटले हाथे करी जाणीने हिंसा करे नहीं एम कहे छे ते माया वाणी के० कपटतुं वचन के एटले मारी माता बंध्या तेनी परे माया गाली बात बोले छे पण शुभ किरिया जे बिहार पडिलेहण नदी उतरवी इत्यादिक करतां जे हिंसा लागी आवे छे ते पोतानी मेलेज लागे छे एम केम कहेवाय. केमके जे नदी उतरवी विहार करवो ते अजाग्यो थतो नयी ते तो पोते जाणेज छे जे नदी प्रमुख उतरतां हिंसा थशे तोपण उतरे छेनी आज्ञा छे ते माटे जे हिंसा शुभ किरिया करतां लागी आवे छे तेमां हाणी के दोष लागतो नथी ॥ १६ ॥ हिंसा मात्र विना जो मुनिने, होय अहिंसक भावे । सूक्ष्म एकेंद्रिनें होवे, तो ते शुद्ध स्वभाव || मन० १७ ॥
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy