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________________ (३७) खेत्र न जाणे तेह यथास्थित, जन पद अध्वविशेषरे। । सुभिक्ष दुर्भिक्ष कल्प न जाणे, कालविचार अशेषरे ॥सा०४॥ __ अर्थ-हवे क्षेत्रद्वार कहे छे अगीतार्थ यथास्थित के० जेवं क्षेत्र होय वेहबु क्षेत्र नसमजे के आ भद्रकक्षेत्र छे के अभद्रक छे इति तथा जनपद के० लोकव्याप्त देशने विषे विहार करतां आवी विधियें करवु अथवा मगधादिकदेशे आवी विधियें करवू इत्यादिक न जाणे. वली अध्वविशेप के० दूर देशे अटवी प्रमुखें आवी रीते विहार करवो इत्यादिक वातो अगीतार्थ न जाणे. हवे कालद्वार कहे छे जे मुभिक्षमा कल्प न जाणे के योग्य न जाणे एटले सुभिक्षमां आ रीते विरच वली दुर्भिक्षमां पण कल्प के योग्य न जाणे जे दुर्भिक्षमां आवी वस्तु होय तोज लेवाय इत्यादिक वातो कालना विचारनी ते अशेप के समस्त प्रकारें अगीतार्थ न जाणे इतिभाव. यतः-"जहठियखित्तं न जाणइ, अद्धाणे जणवए यज भणियं । कालंपिय नवि जाणइ, मुभिख्कदुभिख्कजं कप्पं ॥१॥” इत्युपदेशमालायां ॥४॥ भाव हिह गिलाण न जाणे, गाढ अगाढह कल्परे । खसतो अखमतो जन न लहे, वस्तु अवस्तु अनल्परे ॥सा० ५॥ अर्थ-हवे भावद्वार कहे छे जे भाव के० भावना विचारने विषे हित के निरोगीने तथा गिलाण के० रोगाक्रांतने न जाणे एटले निरोगीने आ देवु तथा रोगीने आ वस्तु देवी ते वातो अगीतार्थ न जाणे अने गाढकल्प के० आकरे कारणे आ रीते करई तथा अगाढकल्प के० स्वभावे सेहेज रीतें तो आ प्रमाणे वर्तवू ए अगीतार्थ न जाणे. हवे पुरुष द्वार कहे छे खमतो के० आ पुरुष सामर्थ्यवान शरीरें कठोर छे माटे खमी शकशे तथा अखमतो के० आ पुरुपर्नु मुकुमार शरीर छे ते नहीं खमी शके एहवा जन के. पाणीने ते अगीतार्थ ओलखे नहीं. वली वस्तु के० आचार्यादिक अवस्तु के. सामान्य साधुने ते अगीतार्थ न ओलखे जे पदस्थने आम घटे तथा सामान्यने आम घटे माटे अनल्प के. इत्यादिक बहु प्रकार ते न जाणे. यतः-"भावे हिगिलाणं, नवि याणइ गाढगाढकप्पंचा सहुअसहुपुरिसरूवं, वत्थुमवत्थु च नवि जाणइ ॥ १॥” इत्युपदेशमालायां ॥ ५ ॥ जे आकुट्टी प्रमादें दरौं, पडिसेवा वलि कल्परे । नवि जाणे ते तास यथास्थित, पायच्छित विकल्परे ॥ सा०६॥ अर्थ-हवे प्रतिसेवा नामें द्वार कहे छे जे निषेध आचरण वेहने प्रतिसेवा कहीयें तेहना चार प्रकार छे तेमां प्रथम आकुट्टी के० जाणीने पाप सेवq ते पण कारण विना सेवq बीजो कंदपादिकने वशथकाजे पाप सेवे ते प्रमाद कहियें त्रीजो धावनवल्गनादिके करी जे पाप लाग्युं ते दर्प कहोयें चोथो आगमोक्त कारणे करी निषेधाचरण करयुं ते
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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