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________________ (.. ( २४ ) कहे कोई नवी सि जोडी, श्रुतमां नहीं कांई खोडी | ते मिथ्या उद्धत भावा, श्रुत जलधि प्रवेशें नावा ॥ ११ ॥ अर्थ- वली केटलाक असमंजस एम वोले छे के नवी सी जोडीके० नवा ग्रंथ अथवा स्तवन सज्याय जोडवानुं शुं काम छे केमके श्रुत के० सिद्धांतमां तो कांइ खोड नथी एटले सिद्धांतमां छे ते करतां तमे अधिक थ्रु कहेशो एवं कहे छे ते पण मिथ्या के० खोडं कडेछे कारणके सिद्धांतमांथी ऊद्धरीने जे ग्रंथ करचा छे ते भाव छे ते श्रुतजलधि के० श्रुतरूप समुद्रमा प्रवेश करवाने नावासरिखाछे एटले समुद्रमां जो नावा होय तो प्रवेश थाय तेमज सिद्धांतरूप समुद्रमां पण जो ए ग्रंथ प्रकरणरूपी नावडां होय तोज प्रवेश थाय ॥ ११ ॥ पूरव सूरियें कीधी, तेणे जो नवि करवी सिद्धि । तो सर्वे कीधो धर्म, नवी करवो जोयो मर्म ॥ १२ ॥ अर्थ -- एवं सांभली वली प्रतिवादी वोल्या के तो पूर्वांचायें जे जोडी कीधी छे तेहज भणी ते के० ते माटे जो नवी करवी सिद्धि के ० नवी जोडी न करवी एम व्रात सिद्ध थई एटले नवा प्रकरण प्रमुख जोडवा नहीं एम सिद्ध थयुं एवं बोलनारने उत्तर कहे छे के तो पूर्वे सर्व उत्तम जीवो थया तेणे सर्वे धर्म करचो छे ते माटे तमे वली धर्म शुं करवा करो छो, तमारे पण न करवो केमके पूर्वाचार्य जोडी करी छे माटे आपणे न करवी तो पूर्वे धर्म पण घणा जीवें करचो छे माटे आपणे न करवो ए मर्म के० ए भाव ॥ १२ ॥ पूरव बुधने बहु माने, निज शक्ति मारग ज्ञाने । गुरुकुलवासीने जोडी, युगति एहमां नहीं खोडी ॥ १३ ॥ अर्थ-माटे जो ग्रंथनो जोडनार आवो थइने नवा ग्रंथ जोडे तो तेमां कांइ दोष नथी पूर्व बुधने बहुमाने के० पूर्व पंडित गीतार्थ थया तेहनुं वहु मान करे जे पूर्वाचार्य आगले ते शा हीसाबमां कुंपण तेनुं वचन खंडे नहीं तथा पोतानी शक्ति प्रमाणे योजना करे पण अधिक योजना न करे जो अधिक योजना करे तो कोइक ठेकाणे खोटुं आवी जाय माटे शक्ति प्रमाणे जोडे वली मार्गज्ञाने के० जैनमार्गनु ज्ञान चोखुं निर्मल होय तो जोडे चली गुरुकुलवासी होय ते संप्रदाय शुद्ध जाणे तेवारें यथार्थजोडाय एवा पुरुषे जोडनुं युक्त घटमान के एमां कांइ खोडी के० हाणी नयी ॥ १३ ॥ एम श्रुतनो नहीं उच्छेद, ए तो एक देशनो भेद | अर्थ सुणि उल्लासें भवी वरते श्रुत अभ्यासें ॥ १४ ॥ अर्थ- ए रीते नवी जोडी करतां श्रुतज्ञाननो उच्छेदनयी थातो पण श्रुतवृद्धि थाय छे एतो एक देशे भेद के एटले ग्रंथ नामे भेद के पण आत्यंतिक भेद नथी वली ए ग्रंथनो जे अर्थ के भाव उल्लासें ० हर्षे सांभलीने भव्यप्राणी ते श्रुतज्ञान भणवाना अभ्यासमां तें
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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