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विषयानुक्रमणिका. २ निर्गुणी छतां गुरुयी तरी, एम माननारा, गच्छमा रहेला निर्गुणीने पण
साधु भनिनात निष्कारण मूलगुण सेवीने चारित्र माननारा, पाप कींधु होय' .ते.प्रतिक्रमणथो छुटे एम बोलनारा, मंडलने सदुपदेश , .... ३ साधुओने नियतवास चैत्यपूजा आर्याए लावेलो आहार कल्पे एम बोलना
'सओने विगयना प्रतिबंधकोने हितोपदेश ४ आत्मसानीए व्रत पालन कर, एम वोलनाराओने अने धर्मोपदेश देवानी . तथा नवीन ग्रंथो रचवानी मनाइ करवावानाओने हितर्शिक्षा ५ गुरु कुलवासमांज रहेवाथी विनयादि सद्गुणोनी प्राप्ति - ६ ज्ञानीओनी उपासना करवी एवी सुचना अने द्रव्य-क्षेत्र काल-भाष-पति
सेवा-योग्य-अयोग्य-सचित्त-अचित्त-मिश्र-कल्प-अकल्प आदियी अन. . भिन्न एवा अगीतार्थोने सदुपदेश ....... .. ....... Tri. ... ३५ ७ सिद्धांत रहस्यथी सुज्ञात एवा सुविहित गीतार्थ आजकाल कोइ नथी माटे "एकाफी विहार करवामां कोइ जातनो वांधो नथी एम बोलनारामान उप• देश अने तेनी साथे पंचमकालमां गीतार्थने पण गुरुकुलवास रुडों के वी सुचना
. ८ अहिंसामाज धर्म मानी पूजा प्रभावना आदि सक्रियाओनो त्याग करना
राओने हेतु अहिंसा स्वरूप अहिंसा अने अनुबंध अहिंसाना स्वरुपने दावी स्याद्वादशैलीथो सद्बोध. .. ... ... ... ... ... ५३ ९ सूत्रने प्रमाणमानीभंचांगीने प्रमाण. नहीं माननारा, प्रतिमाने लोपनारा,योग अने उपधान बहन नहि करनारा, अने पूर्वाशिव पासे माथा उपर बासक्षे
प नही लेनाराओने सुवोध ... १० ज्ञान विना मात्र क्रियारुचि जीवोने बहु दोषनी उत्पचि थाय छे इत्यादि वर्णन ७३ ११ द्रव्य श्रावकना एकवीस गुणोनुं वर्णन .... .... १२ भावश्रावकना छलक्षणर्नु सविस्तर वर्णन ... ... .. .... ८५ १३ भावभावकना सत्तर गुणोतुं वर्णन . . .... .... .... ९१ १४ भावसाधुपणुं पामेला भावभावकोना सात लक्षणोतुं वर्णन अने पंचमकालमां __गीतार्थोए भूत व्यवहारमा करेल फेरफारनी प्रमाणता आदिलु वर्णन .... ९६ १५ सद्गुणी साधुओना सद्गुणोनी स्तुति ... .... .... .... १०५ १६ जीवनी निद्रादि चार दशा, जीव अने पुद्गलनी भिन्नता, शुद्ध व्यवहारनी
मुख्यता, तपगच्छनी स्तुति ज्ञाननी साथै क्रियानी आदर करवायी मोक्षनी
माप्ति आदि विषयोनुं वर्णन .... ... .... ..... .... १११ १७ श्री जिनस्तुति तथा ग्रंथकारनी प्रशस्ति ..... .... ... ... १२२