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________________ दोसी गाथा स्तवन (९९) तइओ य निरवसेसो, एसविही होइ अणुओगो ॥१॥ अर्थ मुत्तत्थो खलु पढमो के० पहेलो सूत्रार्थ निश्चये देवो. वीओ निजत्तिमीसिओ के. वीजो नियुक्ति मिश्र ते सहित देवो. भणिो के० को छे. तइओ य निरवसेसो के जोजो निरवशेप संपूर्ण कहेवो. एसविही होइ अणुभोगो के० एविधि अनुयोग ते अर्थ कहेवानो जाणवो. इति भगवती शतक पचीशमे. हवे कोइ ढुंढक बोल्योजे "नियुक्ति प्रमुख सूत्रथी मलती नथी; वो शुं माने? जे माटे ठाणांग मध्ये सनत्कुमारने अंतक्रिया कही; अने आवश्यक मध्ये श्रीजे देवलोके गया. ए केम मले?" तेहने उत्तर कहेछे के हे देवाणुप्रिय! नियुक्तिकार चौद पूर्वधर समुद्र सरखी बुद्धिना धणी हता; सम सरखा मंदमति न इता. ठाणांगनी टीका मध्ये 'भवांतरे सेत्स्यमानत्वात् ।।' एम कय छे. माटे मलतुंज छे. तथा तेहज भवमां अंतक्रिया मानीए तो नारकीने पण कयु -'अत्ये गइए करेजा अत्थे गइए नो करेजा ।।' ए पाठ केम मलशे? अने कहेशो जे, सूत्रज प्रमाण तो भलं, आज वर्ततां तो घणां मूत्र छे, तेम छतां तमे वत्रीज का मानोछो ? वली कहेशो जे वत्रीश मूत्री मांहोमांहे मलेछे वीजां मलतां नथी. तोय भलं पण अमे जाणीए छैए जे तमारे परस्परे मलवानुं प्रयोजन नथी. तमे केवल जिनप्रतिमाने द्वेषे वीजां मूत्र नथी मानता. पण भला वत्री तो मानोछो. तेपण तमारी मतिए जाणोछो जे ते मले छे तोते मेलवी आपो ते माटे प्रसंगोपात काइक लखीए छैए ।। समवायांगे मल्लिनाथ प्रभुजीने पांच हजार सातसें मनपर्यवज्ञानी अने श्रीज्ञातामां तो आठसें कह्या. ते केम मळे ? तथा च मूत्र-"मल्लिस्स णं अरहओ सत्तावनमणपज्जवनाणी सया होत्या।।" इति समवायांगे।। "असय मणपज्जवनाणीणं ॥" इतिश्रीज्ञातायां ए केमो समवायांगे श्री मल्लिमभुने पांचहजार नवसे अवधिज्ञानी, अने ज्ञातामांहे बेहजार अवधिज्ञानी. एकेम? २ ज्ञातामां अध्ययन पांवमे श्रीकृष्णने वत्रीश हजार स्त्रीओ कही; अने अंतगडदशांगमां प्रथमाध्ययने तो सोलहजार कही. ए केम ? ३ श्रीराजमश्नीयमांहे केशीकुमारने चार ज्ञान कयां, अने उत्तराध्ययने वत्रीशमे अध्ययने अवधिज्ञानी कह्या. ए केम? ४ भगवतीमां शतक पहेले उद्देशे बीजे विरापित संजमी जघन्यथी भवनपतिमा जाय, उत्कृटे सौधर्मे जाय एवं कां छ; अने ज्ञातामां तो अध्ययन सोलमे सुकमालिका विराधित संजमी ईशान देवलोके गइ ए केम? ५ उववाइमां तापस उत्कृष्टा ज्योतिपी लगे जाय एम कयु छे, तो श्री भगवतीमां तामलीतापस ईशानेंद्र थयो. ए केम ? ६ उववाईमां चौदपूर्वी उत्कृष्टा लांतके जाय एम.की, तो भगवतीमां कार्तिकशेठ चौदपूर्वी सौधर्मेंद्र यया. ए केम ? ७ श्री भगवती मध्ये श्रावक होय ते त्रिविध त्रिविध कर्मादाननां पञ्चक्खाण करे एम कडं तो श्री उपासकदशामध्ये आणंदे हल मोकलां राख्यां ते केम? ८ तथा उपासकदशामा कुंभार श्रावके नीम्हाडा मोकलां राख्या एकेम ? ९ वेदनीयकर्मनीजघन्य स्थिति श्रीपनवणासूत्रमा वार मुहूर्तनी कही तो उत्तराध्ययना अंतर्मुहूर्तनी कही. ए केमी १० श्री भगवतीमां शतक • धीजे उद्देशे पहेले. संघाने अधिकारे वार प्रकारनां वाल मरण.फरतो जीव अनंता नारकी, तस्यच . ..
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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