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________________ ( ६ ) प्रस्तावना. सिद्ध बनाववामाटे जरुरतो हती के श्रीहरिभद्रमूरि महाराज संविज्ञपाक्षिक नडता एवा आशय वाळा पाठनी परंतु पोतानी वात सिद्ध करवानी अभिलापाथी ' सम नामयी भ्रमित थयेला पेटलाक एम कहे छे के हरिभद्रसूरि चैत्यवासिओयी दीक्षित अने शिक्षित हता वात गीतार्थोंने मान्य नथी' आवा प्रकारना अर्थ बोधक जिनदत्तमूरिए गणधर सार्धगतकमां लखेली “ जंपड़ केई समनामभोलि भोलिभाई जंपति । चीया (य) वासिदिक्खिओ सिक्खओ य गीयाण तं न मयं ॥ ५७॥ " आ गाथा मुकी छे" ते आवी विद्वत्ता भरेली प्रस्तावनाना लेखकने अत्यंत लज्यास्पद छे कारण के आ बात महामामाणिक आ ग्रंथकार महात्माए आज श्रीहरिभद्रमरिकृत अष्टकना टीकाकार नवांगी वृत्तिकार श्रीम अभयदेवसूरि महाराजाए शोधेल तेमना गुरु श्रीमत् जिनेश्वरसूरीश्वरजी महाराजाए करेल सत्तावसमा अष्टकना विवरणमां लखेल “ संविग्नपाक्षिको हामौ " आ वाक्यने अनुसरीनेज लखेल छे माटे ए वातने प्रमाण विरहित अने असंभप्राय छे एम लख ए कोड़ पण रीते उचित गणी शकाय एम अमारुं मानवुं नथी. महात्मा श्लोकी श्रीहरिभद्रमूरि महाराजानी अवज्ञा करी नयी पण एक रीते स्तुतिज करी छे. आ महात्माने श्रीहरिभद्रमूरि महाराज उपर संपूर्ण राग हतो ए बात आ ग्रन्थकारना ग्रंथो वांचवाथी स्पष्ट रीते जाणी शकाय छे अने तेना नमुना तरीके साडावणसो गाथाना स्तवननी पनरमी डालनी अगीआरमी गाधाज वस छे. "6 'सुविहित गच्छ किरियानो धोरी, श्री हरिभद्र कहाय । एह भाव धरतो ते कारण, मुझमन तेह सुहाय ॥ ११ ॥” यद्यपि आ त्रणे स्तवनो प्रकरणरत्नाकर आदि ग्रंथोमां भिन्न भिन्न छपाइ गयेल छे तेने जो एकत्र करवामां आवे तो तेना अभिलापिओने सानुकुल पढे एवी शुभ अभिलापाथी न्यायांभोनिधि श्रीमद् विजयानंद मूरीश्वरजी महाराज श्रीना पट्टमभावक श्रीमद् विजयकमलसूरीश्वरजीए प्रसंगोपात खंभातनगर निवासी धर्मचुस्त चोकशी अमरचंद मूलचंदने एक पुस्तकमां आ त्रणे स्तवनोनो संग्रह थाय तो सारं एम कहेवाथी ते सद्गृहस्थे आ पुस्तक छपावनामां जे खर्च लागे ते आपवानी उदारता दर्शावी आ समाने आभारी बनावी छे आ सभा पण तेमना आ सत्कार्यना अनुमोदवा साथे तेमने धन्यवाद आपेछे. अमारी नम्रप्रार्थनाथी महोपाध्यायजी श्रीमद् वीरविजयजी महाराजश्रीना शिष्यरन पंन्यासजी महाराज साहेवजी श्रीमद् दानविजयजो गणीए अमूल्य समयनो भोग आपी अमने आ ग्रंथ शुद्ध करी आपेल छे. माटे अमे तेभोश्रीनो अत्रे उपकार मानी अमारी फरज किंचित् अशे अदा करीए छीए. लेखक भादवा सुदी १२ ! श्री महावीर जैनसभा अने आत्मकमल जैन लायब्रेरीना सेक्रेटरी. संवत १९७५. ļ अंबालाल जेठालाल शाह.
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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