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________________ - दोढसो गाथा स्तवन (६९) छे. ॥ जइ तंसि भोए चइउं असत्तो, अन्जाई कम्माई करेहि राय। धम्मे ठिो सन्वपयाणुकंपी तो होहिसि देवोइओ विउव्वी ।१।"व्याख्या-चित्रमुनिए ब्रह्मदत्तने उपदेश घणो दीयो, पण प्रतिबोध न पाम्यो. तेवारे चित्रमुनि कडेछ. जइ के जो, तसि के तुं छे. भोए चइउं असत्तो के० भोग छोडवा असमर्थ तो, अजाई कम्माई के० आर्य फाम-उत्तम लोकने उचित एहवां कार्य जे अनुष्टान, करेहि राय के हे राजन् करजे. धम्मे ठिओ के धर्मने विपे रह्यो. प्रस्ताव थकी गृहस्थ धर्म लइए एटले गृहस्थ धर्ममां रखो. सव्वपयाणुकपी के० सर्व मजा जे पाणी तेमनी अनुकंपावंत थको, तो के० ते आर्य कार्य करवायी होहिसि के० थाइश. देवो के देवता, इओ के० आ मनुष्यना भव थकी, विउच्ची के. क्रिय शरीरवंत यइश. अहीयां कोइक कहे छे जे “आर्य काम ते पोसह सामायिक लीजीए पण पूना नहीं" तेने कहीए जे भोग छोडवा असमर्थ कयो छे अने पोसह सामायिकमां तो भोग छंडाय छे; माटे पूना, प्रभावना अने साहमिवत्सल प्रमुखज आवे आर्य कार्य श्रावकनां जेछ । तेहमां हिंसा दिठ ।। हेतु स्वरूप अनुबंध विचारे ।। नाशे देई निज पिठ ॥सु० ॥१८॥ अर्थ-आर्य कार्य श्रावकनां जे छे के जे जे श्रावकनां आर्य काम छे, तेहा हिंसा दिठ के० तेहमां एटले आर्य काममां हिंसा दीठी छे. ते हिंसा त्रण प्रकारे छे तेत्रण प्रफार देखाडेछे. हेतु के. एक हेतुहिंसा, स्वरूप के० वीजी स्वरूपहिंसा अन, अनुबंध के. त्रीजी अनुवंघहिंसा, विचारे के० ए त्रण भेद, हिंसाना विचारे तो, नारे देइ निज पिठ के ते पूजा प्रमुखमां हिंसा मरूपनारा कुमति पोवानी पूठ देइने नाशे पण युक्तिए की शके नहीं. इति अष्टादशमी गाथार्थ ॥ १८ ॥ हवे एज प्रण प्रकारनी हिंसानो अर्थ देखाडे छे. हिंसाहेतु अयतना भावे ॥ जीव वधे ते स्वरूप ।। आणाभंग मिथ्यामति जावे ॥ ते अनुबंध विरूप | सु०॥१९॥ अर्थ-हिंसाहेतु के हेतुहिंसा ते कहीए जे, अयतना भावे के० अनाउपयोग प्रमादे प्रवर्तव; तेहमां यद्यपि जीवहिंसा न थाय तोपण हेतुहिंसा कहीए. हवे स्वरूपहिंसाकहे छे. ते स्वरूप के० तेहने स्वरूपहिंसा कहीए. कोने ? ते कहे छे. जीव वधे के० माणीनो घात थाय. तेवारे एटले मुनिराज पण उपयोगे चालता हालता होय अने कोइ जीवनो घात थयो. तो मुनिने स्वरूपहिंसा लागे; पण ते स्वरूपहिंसा, हीणां फल देवानो एकांत नहीं. हवे अनुबंधहिंसा कहे छे. आणाभंग के० प्रभुजीनी आज्ञानो भंग करे, आज्ञा लोपे मिथ्यामति भावे के० मिथ्या विपरीत एहवी जे मति, ते भावे करीने एटले विपर्यास . तस्यच : स.
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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