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________________ देन्ति । भमडेजा वड्ढन्ते । होजा. झाअन्ति। . होजह । जम्मसि। अच्चसे। जन्ति । जग्गह। संयुक्त व्यञ्जननी पूर्वना दीर्घस्वरनो प्रायः हूस्व थायछे जा+न्ति • =जन्ति; दा+अ+न्ति-दा++न्ति-देन्ति-दिन्ति. (अमे ) बे ध्यान करीए छीए. । (हुं) पीउँछु. (तेओ) वे गायछे. (तुं) भूलेछे. (तमे) बे जाओछो. (तेओ) भमेछे. (तेओ) वधेछे. (तमे) वे पूछोछो. (अमे) बे करमाइए छीए. (तेओ) पेदा थायछे. (अमे) उंघिए छीए. (अमे) बे जाणीए छीए. (तेओ) वे पूछे. (तेओ) छोडेछे. (तुं) सींचेछे. (हुं ) बलुछु. (तमे) वे जीतोछो. (तेओ) चे मुंझायछे. (ते ) नमेछे. (अमे) वे वीइए छीए. (तेओ) याद करेछे. (तेओ) वे ग्रहण करेछे. (तेओ) वे रांधेछे. (ई) आपुंछु. (तमे) वे दोडोछो. (तेओ) गरजेछे. (अमे) जीवीए छीए. ऊपरना चार पागेमांना केटलाएक प्रश्नोः-. प्राकृतभाषामां वपराता स्वरो तथा व्यंजनो गणी बतावो, तथा बचनो केटलां छे, ते कहो.
SR No.010661
Book TitlePrakrit Margopdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1919
Total Pages195
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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