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________________ ३८ : धर्मविन्दु ' . दूर्वादल, कुन्तुंब नामक वनस्पति, जहांकी मिट्टीका रंग व गंध शुद्ध और अच्छा हो । स्वादिष्ट जल सहित तथा द्रव्य भंडारसे युक्त पृथ्वी पर तथा वास्तुशास्त्र के नियम पर बने हुए घरमें रहने पर संपत्तिकी हानि आदि तथा अन्य अनेक लोकप्रसिद्ध दोप उत्पन्न होते हैं। साथ ही घरके शुभ लक्षण गृहस्थकी इच्छित सिद्धिमें मुख्य साधन हैं। वर्तमान समयमें धरके लिये आवश्यक चीजोमें सूर्यके प्रकाश व हवा के आवागमनके रास्ते मुख्य हैं तथा अत्यन्त आवश्यक हैं, हो सके तो एक बगीचा भी हो । गृहके उक्त लक्षण संशयरहित हैं, यह कैसे जाना जाय १ कहते है-- निमित्तपरीक्षेति ॥२२॥ मूलार्थ-शकुन आदि निमित्तसे परीक्षा करे। विवेचन-शकुन, स्वप्न व उपश्रुति (शब्द श्रवण) आदि निमित्तशास्त्र के अग है । इन निमित्तोंसे जो अतीन्द्रिय (जो पदार्थ सीधे इन्द्रियोके विषयसे परे है) पदार्थों के ज्ञानका हेतुभूत है, घरके लक्षणोंकी परीक्षा करना चाहिए । सब प्रकारसे संदेह, विपरीतता व अनिश्चय आदि यथार्थ ज्ञानके दोषको छोडकर अवलोकन करना-परीक्षा है । इस तरह घरके लक्षणोको देखे । तथा अनेकनिर्गमादिवर्जनमिति ॥२३॥ मलार्थ-जाने आनेके बहुतसे द्वारोंसे रहित वनावे ॥ विवेचन-अनेके-बहुतसे, निर्गमादि-निकलने के रास्ते तथा प्रवेशके, वर्जनम-नहीं रखना ।
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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