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________________ यतिधर्म देशना विधि : ३४५. उत्सर्गमार्गमे संलेखना करना प्रारंभ करे। वारह वर्ष संलेखना करना चाहिये, उसमें--, "चत्तारि विचित्ताई, विगईनितहियाइ धत्तारि । संवच्छरे य दोण्णि उ, एगरिय च आयामं ॥१९५॥ "नाइविगिट्ठो य तवो, छम्मासे परिमियं च आयामं । अन्नेवि य छम्माले, होइ विगिटुं तवोकम्मं ॥१९६॥ "वास कोडिसहिय, आयामं काउमाणुपुबीए । गिरिकंदरं तु गंतुं, पायवगमणं अह करेइ ॥१९७॥' [पञ्च० १५७४, ७५, ७६]] -~-पहले चार वर्ष तक विचित्र तप, चतुर्थ, अष्टम, द्वादश आदि (एक, दो, तीन, चार, पाच उपवास) आदि करे । फिर चार वर्ष तक विचित्र तप करे पर पारणेमे नीवी तप करे अर्थात् उत्कृष्ट रसका त्याग करे । फिर दो वर्ष तक उपवास आदि करे और पार-. गेमें आयंबिल करे । इस प्रकार दस वर्ष व्यतीत होने पर ग्यारहवें वर्षमें प्रथम छ मासमें चतुर्थ, षष्ठ (एक या दो उपवास) तप करे और पारणेमे आयंबिल करे पर कुछ कम आहार ग्रहण करे और पारणेमें आयविल करके ग्यारहवां वर्ष पूरा करे । वारहवें वर्षम अत तक कोटिसहित (उणोदरीव्रतसहित) आयंबिल निरंतर करे। कोई कहते हैं कि बारहवें वर्षमें चतुर्थ करके पारणेमें आयविल करे । तपमें भेद होनेसे परंपरानुसार तप करे। इस प्रकार बारह वर्ष संलेखना करके पर्वतकी गुफामें या जहां षट्जीवनिकायकी रक्षा हो वहां जाकर पादोपगमन नामक अनशन व्रत करे ।
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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