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________________ यतिधर्म देशना विधि : ३१९ १२. दुष्ट - कषायदुष्ट जो मामूली कारण होनेसे व्यतिकषाय या क्रोध' करनेवाला तथा विषयदुष्ट जो परस्त्री आदिमें या व्यसनोमें ध हो; ये दोनों ही दीक्षाके अयोग्य हैं। १३. मूढ - स्नेह या अज्ञानसे वस्तुज्ञानरहित मूढमें कार्य, भकार्यका विवेक नहीं होता । १४. ऋणी - राजा या अन्यका कर्जा हो । उसका निरादर होता है । १५. जुंगित - जाति, कर्म या शरीर से दूषित - हलकी जातिचाला, चंडाल, मोची आदि जातिजुंगित है । मोर, तोता आदि पालकर बेचनेवाले, नट तथा शिकार आदि निन्द्य कर्म करनेवाले कर्मजुंगित हैं । विकलांग जैसे बहरे, लुले, लंगडे, काने, कुबडे आदि शरीरजुंगित हैं । १६. अवबद्ध - द्रव्य या विद्या निमित्त दीक्षा लेनेवाला या काल नियत करके दीक्षा लेनेवाला अवबद्ध है। उससे कलह आदि दोषकी उत्पत्ति संभव है । १७. भृतक - अवधि सहित रखा हुआ चाकर अवधि समाप्ति तक अयोग्य है। J १८. निष्फेटिका - माता-पिता आदिकी आज्ञा बिना आये हुए या अपहरण किये हुएको दीक्षा न दे। इससे माता, पिता दिका कर्मबंध होता है तथा दीक्षा देनेवालेको अदत्तादान लगता है । तथा --
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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