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________________ गृहस्थ विशेष देशना विधि : २२१ मूलार्थ साधुको अर्पण करने योग्य वस्तुको सचित्त पर रखना, उसे सचित्तसे ढंकना, अपनी वस्तुको दूसरेकी बताना, मत्सरभाव तथा समयका उल्लंघन करना- ये पांच अतिचार अतिथि संविभागवतके हैं। विवेचन- सचित्रं- जिसमे जीव हो- मचेतन, जैसे पृथवी आदि । निक्षेप- ऐसे स्थान पर साधुको देने योग्य वस्तु रखना ॥१॥ विधान- सचित्त वस्तु जैसे बीजोग आदिसे साधुको देने योग्य वस्तुको ढांकना ॥ २ ॥ परव्यपदेश- अपनेसे भिन्न साधुको देनेकी इच्छा न होने पर साधुके सामने " यह अन्नादिक वस्तु मेरी नहीं है" कहना ॥ ३ ॥ मत्सर- सहन न करना, साधु आदि द्वारा मागने पर क्रोष करना अथवा तो " क्या मैं उसे कैसे कम हूं, जो उसने दी" आदि विकल्प करना ऐसा भाव रखना- असहनगीलता- मत्सर भावको मात्सर्य कहते हैं ॥ ४ ॥ कालातिक्रम-धुकी गोचरीके योग्य समयका व्यतीत हो जाना- उस समयको जाने देना- अथवा तो उसे गोचरी न देनेके हेतु, समय जाने बाद साधुको विनति करना- कालातिकम है ॥४॥ ये पांचो अतिचार है, जो त्याज्य है । इसमें भावना यह है कि यदि अनाभोग व अतिक्रमसे हों तो ये अतिचार हैं अन्यथा व्रतभंग 'होता है, अत इनका त्याग ही उचित है।
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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