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________________ २१४ : धर्सबिन्दु अब शिक्षाव्रतोंके अतिचारमें प्रथम (सामायिक )के अतिचार कहते हैं योगदुष्प्रणिधानानादरस्मृत्यनुप स्थापनानीति ।।३१।। (१६४) मृलार्थ-मन, वचन, कायाके योगोंकी पापमार्गमें प्रवृत्ति, अनादर व स्मृतिनाश-ये पांच प्रथम शिक्षाव्रतके अतिचार हैं। विवेचन-योगदुष्प्रणिधान-योग अर्थात् मन, वचन व कायाके योग-मनोयोग, वचनयोग व काययोग-उनका दुष्प्रणिधान या पापमार्गमें प्रवृत्ति-ये तीन अतिचार हुए। अनादर-प्रवल प्रमाद आदि दोषसे जैसे तैसे सामायिक करनासामायिक पूर्ण हुई या नहीं इसका ख्याल किये बिना या प्रारंभ करके संपूर्ण हुए बिना उसी क्षण पार लेना-या समाप्त कर देना। स्मृत्यनुपस्थापन-स्मृतिनाश अर्थात् सामायिक करनेके अवसर या समयकी स्मृतिका न रहना अथवा " मुझे सामायिक कब करना है" या " मैने सामायिक किया या नहीं" इस प्रकारके स्मरणका नष्ट होना। __मनोदुष्प्रणिधानसे सामायिककी निरर्थकता और उससे अभाव ही का प्रतिपादन किया है । सामायिकके अभावस क्या होता है । मतः यह अतिचारका मलिनरूप हो जाता है। यह तो भंग हुआ अतिचार कैसे!
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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