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________________ LAVAN गृहस्थ विशेष देशना विधि : २१३ तिका, संभव होता है । ऐसे वचन श्रावक न बोले। उससे सब अनर्थ होते हैं, अतः श्रावक मित, हित, प्रिय व सन्य बोले । असमीक्ष्याधिकरण कोई कार्यमें किसी वस्तुकी आवश्यकता है या नहीं यह विचारे बगेर किसी अधिकरण या सामग्रीका रखनाऐसी सामग्री या वस्तु जो.खास कर पापमें प्रवृत्ति करावे। जैसे खैरल, ओखली, शिला, गेहूंका पीसनेका यंत्र-घंटी या चक्की, तलवार, धनुष आदि साधन श्रावक न रखे, क्योंकि उससे हिंसा होती है तथा दूसरे ले जाकर उसका दुरुपयोग भी करते हैं । टीकाकार बताते हैं कि-'श्रावक जुडी हुई गाडी आदि न रखे" क्योंकि कोई मांग कर ले जाय तो वह या ऐसी वस्तुओंसे हिंसा करे तव हिंस्रप्रदान अतका अतिचार लगता है। उपभोग अधिकत्व-उपभोग तथा मोगकी अधिकता अर्थात् आवश्यकसे अतिरिक्त- आवश्यकता से अधिक वस्तुएं होनेसे ममत्व बढ़ता है। उसका अन्य कोई दुरुपयोग करे तो भी उस वस्तु के स्वामीको दोष लगता है। ये सब अतिचार, तब लगते हैं जब व्रतका. आचरण प्रमादसहित होता है । अत. उसका परिहार-त्याग करना चाहिये । यदि व्रतका आचरण अपध्यानसे अतिचारसे किया जावे तो अपध्यान प्रवृत्ति अनाचार लगता है। जो कंदर्प आदि अतिचार कहे हैं वे यदि निर्दयतापूर्वक और जानबूझकर काये जावे तो वह भग ही होता है, अतिचार नहीं।
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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