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________________ गृहस्थ विशेष देशना विधि : १९७ साथ भोग करना व्रतमंग है। परदार विरमण व्रतीके लिये ये अतिचार है कारण कि पर अर्थात् अपनी विवाहितासे जुदी चाहे कोई स्त्री हो वह पर है, अतः स्वदाराको छोड कर किसीके साथ भी भोग करनेसे भंग होता है तथा कहनेको नहीं भी होता, अतः अतिचार है। ___ कुछ आचायोंके मतसे इत्वरपरिगृहीतागमन स्वदार संतोपीके लिये अतिचार है, जिसमें भावना पूर्ववत् है और अपरिगृहीतागमन परदार विरमण व्रतीके लिये अतिचार है, जिसकी भावना इस प्रकार है- अपरिगृहीता- वेश्यामें यदि उसने किसी अन्यसे पैमै ग्रहण किये हैं तो उसके साथ सभोग करनेसे परस्त्री हो जानेसे दोष आता है । साथ ही वेश्या होनेसे व्रतभंग नहीं होता है, अतः भंग व ममंगसे अतिचार हुआ। . पुनः दूसरे आचार्य इस प्रकार कहते हैं "परदारवजिणो पंच, होति तिन्नि उ सदारसंतुटे । इत्थीए तिन्नि पंच क, भंगविगप्पेहिं नायब्वा" ॥१०॥ --परस्त्री विरमण नतीको पांच तथा स्वदार संतोषीको तीन अतिचार होते हैं। स्त्रीको भी इसी प्रकार भंगके विकल्पसे तीन और 'पांच अतिचार होते हैं- . - दूसरेने थोडे समयके लिये जिसे रखा हो ऐसी वेश्याके साथ गमन करनेसे परखी विरमण व्रतीको अतिचार होता है क्योंकि वह कुछ तो ' परस्त्री के नामसे प्रख्यात है। अतः व्रतभंग हुआ और कामुककी कल्पनासे और उसके भरिके अभावसे वह परस्त्री नहीं
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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