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________________ गृहस्थ विशेष देशना विधि : १७७ मूलार्थ-स्थूल हिंसा आदि पांच अव्रतसे निवृत्त होनेको पांच अणुव्रत कहते हैं ||१६|| विवेचन- १. यहां प्राणातिपातका अर्थ प्रमादसे प्राणीका नाश करनेको हिंसा कहा है । वह दो प्रकारकी है- स्थूल तथा सूक्ष्म । पृथ्वी, पानी, तेज, वायु तथा वनस्पति -पव स्थावर काय सूक्ष्म हैं तथा चेइंद्रिय आदि सकाय रथूल है, जो दृष्टिगोचर भी हो सकते हैं ऐसे स्थूल प्राणीओकी हिंसा स्थूल है। इसी प्रकार - २. स्थूल मृपावाद - दिखता हुआ या ज्ञात झूठ । ३. स्थूल अदत्तादान - जान बूझ कर चोरी करना । ४. स्थूल अनह्मचर्य (मैथुन ) - स्वलीको छोड कर अन्य मैथुन, परखी, पर पुरुष, पशु, नपुंसक अथवा अप्राकृतिक मैथुन । ५. स्थूल परिग्रह - नियमित परिग्रहसे अधिक रखनेको कहते है । इन पांचोंका त्यागे, इनका न करना, स्थूल प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन व परिग्रह विरमण व्रत कहलाते हैं। वे प्रायः प्रसिद्ध हैं। इन पांचों स्थूल प्राणातिपात आदि महा पातकोंसे विरति या इनका त्याग स्थूल प्राणातिपातादि विरमण व्रत कहलाते हैं । ये पाचों अनत कहलाते हैं, कारण कि साधुके व्रतसे वे छोटे व्रत हैं। साधुके नियम महानत हैं तथा श्रावकके अणुव्रत । इन पांचोंका त्याग स्थूल प्राणातिपात आदि पांच अणुव्रत कहलाते हैं । तथा - दिगवत भोगोपभोगमानानर्थदण्ड विरतयस्त्रीणि गुणवतानीति ||१७|| (१५०) - ૨
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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