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________________ गृहस्थ देशना विधि : ९३ भिन्नता आती है । क्रियामेदसे मोक्षका अभाव हो जाता है। मोक्षका अभाव हो जानेसे दीक्षा निरर्थक है । ' इन आठ नियमोका ध्यान कर विनय सहित गुरुके पास अभ्यास करनेसे ज्ञान वृद्धि होती है तथा ज्ञानावरणीय कर्म क्षय होते हैं। २. दर्शनाचार-' तत्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् ' तत्त्वार्थ पर श्रद्धा रखनेको · सम्यग्दर्शन' कहते है । इसके भी आठ भेद हैं१ निश्शंकित, २ निष्काक्षित, ३ निर्विचिकित्सा, ४ अमूढदृष्टि, ५ उपहा, ६ स्थिरीकरण, ७ वात्सल्य और ८ तीर्थप्रभावना । १. निश्शंकित-शंका रहितता-शंका दो प्रकारकी है-देशशंका व सर्वशंका-धर्मके किसी एक (या कुछ ) सिद्धातके बारेमें शंकाको देशशंका कहते हैं और धर्मके सब तत्वों के बारेमें शंकाको सर्वशंका कहते हैं। जैसे, 'जीवत्व सामान होते हुए भी एक जीव भव्य है तथा एक अभव्य है ऐसा क्यो:। यह देशशंका है। "धर्मके सारे सिद्धात प्राकृत भाषामें निबद्ध या रचे हुए है अतः यह सब फल्पित मालूम पडता है" ऐसी शंका सर्वशंका है। ऐसे स्थान पर शंका करनेवालेको यह सोचना चाहिये कि संसारमें कई वस्तुएं हेतुप्राय है अर्थात् कारण देकर समझाई जा सकती हैं तथा कई पदार्थ अहेतुग्राह्य है अर्थात् उनके कारण अपनी सामान्य बुद्धिसें नहीं समझे जा सकते । सर्वज्ञ ही समझ सकते हैं। जीवका अस्तित्व आदि हेतुग्राम है। हेतुग्राह्य वे है जो प्रत्यक्ष ज्ञानसे - देखें व
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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