SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संतोषके लिये और शास्त्रार्थका कौतुक देखनेके लिये उन्होंने श्रीमानतुंगमुनि महाराजके निकट अपना दूत बुलानेके लिये भेज दिया । राजाज्ञाके अनुसार उसने मुनिमहाराजसे निवदेन किया कि,-" भगवन् , मालवाधीश महाराज भोजने आपकी ख्याति सुनकर दर्शनोंकी अभिलाषा की है, और दरवारमे बुलाया है, सो कृपाकरके चलिये।" मुनिराजने कहा“भाई, राजद्वारसे हमारा क्या प्रयोजन है ? हम खेती नहीं करते हैं, वाणिज्य नहीं करते हैं, किसी प्रकारकी किसीसे याचना नहीं करते हैं, फिर राजा हमें क्यो बुलावेगा ?" मुनिराजने जो उत्तर दिया था, दूतने महाराजसे जा कहा । इसपर राजाने फिर सेवक भेजे, परन्तु फिर भी वे नहीं आये । इस प्रकार चार चार वार सेवक भेजे, परन्तु मुनिराजने उसीप्रकारका उत्तर दिया, जैसा कि पहले दिया था । पाचवीं वार कालिदासके उसकानेसे महाराजको क्रोध आ गया । इसलिये उन्होंने सेवकोंको दरबारमें आज्ञा दे दी कि," उन्हें जिसतरह हो, पकडके ले आओ।" कई वारके भटके हुए सेवक यह चाहते ही थे । तत्काल ही उन्हें पकड लाये और सभामें लाके खड़े कर दिये । उस समय उपसर्ग समझके मुनिराजने मौन धारण करके साम्यभावका अवलम्वन कर लिया। राजाने बहुत चाहा कि, ये कुछ बोलें, परन्तु उनके मुंहसे एक अक्षर भी नहीं निकला । तव कालिदास तथा अन्य विद्वेषी ब्राह्मण बोले कि-" महाराज, यह कर्णाटक देशसे निकाला हुआ यहा आ रहा है । महामूर्ख है, राजसभा देखके भयभीत हो गया है, इससे नहीं बोलता है।" इसपर वहुत लोगोंने मुनिराजसे प्रार्थना की कि, “ आप साधु हैं । इस समय आपको कुछ धर्मोपदेश देना चाहिये । राजा विद्यामिलासी है, सुनकर सतुष्ट होंगे।" परन्तु मुनिराज पंचपरमेष्ठीके ध्यानमें अडोल हो रहे । सब लोग कहकहके थक गये, परन्तु कुछ फल नहीं हुआ। इसपर राजाने क्रोधित होकर उन्हें अड़तालीस कोठरियोंके भीतर एक बंदीगृहमें हथकडी वेडी डालकर कैद कर दिया । प्रत्येक कोठडीके द्वारपर एक एक मजबूत ताला जड़कर वाहर पहरेदार बैठा दिये । मुनिराज उस स्थानमें तीने दिन तक कैद रहे। चौथे दिन यह आदिनाथस्तोत्र नामका काव्य रचकर जो कि यंत्र मंत्र ऋद्धिसे गर्भित है, ज्यों ही उन्होंने एक बार पाठ किया,
SR No.010657
Book TitleAdinath Stotra arthat Bhaktamar Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1912
Total Pages69
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy