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________________ भगवजिनसेनाचार्यप्रणीत आदिपुराणको देखनेसे मालूम होता है कि आदीश्वर भगवानके सुपुत्र भरतमहाराज, प्रथम चक्रवर्तीने अपनी राजधानी अयोध्यामें रत्नखचित जिनबिम्बोसे अलंकृत चौबीस चौबीस घंटे तय्यार कराकर उनको, नगरके बाहरी दरवाजों और राजमहलोंके तोरणद्वारों तथा अन्य महाद्वारोंपर, सोनेकी जंजीरों में बांधकर प्रलम्बित किया था। जिससमय भरतजी इन द्वारोमेसे होकर बाहर निकलते थे या इनमे प्रवेश करते थे उससमय वे तुरन्त अर्हन्तोका स्मरण करके, इन घंटोमे स्थित अर्हत्प्रतिमाओंकी वन्दना और उनका पूजन करते थे। नगरके लोगो तथा अन्य प्रजाजनोने भरतजीके इस कृत्यको बहुत पसंद किया, वे सब उन घटोंका आदर सत्कार करने लगे और उसके पश्चात् पुरजनोने भी अपनी अपनी शक्ति और विभवके अनुसार उसी प्रकारके घंटे अपने अपने घरोके तोरणद्वारोपर लटकाये । भरतजीका यह उदारचरित बड़ा ही चित्तको आकर्षित करनेवाला है और इस (प्रकृत) विषयकी बहुत कुछ शिक्षाप्रदान करनेवाला है । उनके अन्य ___* उपर्युक्त आशयको प्रगट करनेवाले आदिपुराण (पर्व ४१) के वे । आर्षवाक्य इसप्रकार है: "निर्मापितास्ततो घंटा जिनबिम्बैरलंकृताः। परार्ध्यरत्ननिर्माणाः सम्बद्धा हेमरज्जुभि ॥ ८७ ॥ लम्बिताश्च बहिर्वारि ताश्चतुर्विशतिप्रमाः। राजवेश्ममहाद्वारगोपुरेष्वप्यनुक्रमात् ॥ ८८॥ यदा किल विनिर्याति प्रविशत्यप्ययं प्रभुः। तदा मौलागलग्राभिरस्य स्थादहेतां स्मृतिः ॥ ८९ ॥ स्मृत्वा ततोऽहंदर्चानां भच्या कृत्वाभिवन्दनाम् । पूजयत्यभिनिष्कामन् प्रविशंश्च स पुण्यधीः ॥ ९०॥ रखतोरणविन्यासे स्थापितास्ता निधीशिना। दृष्ट्वाऽद्वन्दनाहेतोर्लोकोऽप्यासीत्कृतादरः ॥१३॥ पौरैर्जनैरतः खेषु वेश्मतोरणदामम। यथाविभवमाबद्धा घंदास्ताः सपरिच्छदाः ॥ ९४ ॥
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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