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________________ अतिलोभी, दुष्टान्मा, अतिमानी, मायाचारी, अपवित्र, कुरूप और जिनसंहिताको न जाननेवाला पूजन करनेके योग्य नहीं होता है। यदि निषिद्ध पुरुष भगवानका पूजन करे तो राजा और देशका तथा पूजन करनेवाले और करानेवाले दोनोका नाश होता है । इसलिये पूजन करानेवालेको. यतके साथ जिनेंद्रदेवका पूजक ऊपर कहे हुए लक्षणोंवाला ही ग्रहण करना चाहिये-दृसरा नहीं। यदि उपर कहे हुए गुणोवाला पूजक, इन्द्र . समूहकर वदित श्रीजिनदेवके चरणकमलकी पूजा करे, तो राजा और देश तथा पूजन करनेवाला और करानेवाला सब सुखके भागी होते है।" अब यहापर विचारणीय यह है कि, यह उपर्युक्त स्वरूप साधारणनित्यपूजकका है या ऊंचे दर्जेके नित्यपूजकका अथवा यह स्वरूप पूजकाचार्यका है । साधारण नित्यपूजकका म्वरूप हो नहीं मकता । क्योकि ऐसा माननेपर आगमसे विरोधादिक समस्त वही दोप यहा भी पूर्ण रूपसे घटित होते है, जो कि धर्मसंग्रहश्रावकाचार और प्रजासाग्मे वर्णन किये हए ऊचे दर्जेके नित्यपूजकके स्वरूपको नित्यपूजक मात्रका स्वरूप म्वीकार करनेपर विस्तारके साथ ऊपर दिखलाये गये है । बल्कि इस स्वरूपमै कुछ बाने उससे भी अधिक है, जिनसे और भी अनेक प्रकारकी बाधाएं उपस्थित होती है और जो विस्तार भयसे यहा नही लिखी जाती। इस स्वरूपके अनुसार जो जैनी रूपवान् नही है विद्वान् नही है, चतुर नहीं है अर्थात् भोला वा मूर्ख है, जो जिनसंहिताको नहीं जानता, जिसका कद अधिक लम्बा या छोटा है, जो बालक है या अतिवृद्ध है, जो पापके काम करना जानता है और जो अतिमानी, मायाचारी और लोभी है, वह भी पूजनका अधिकारी नहीं ठहरता। इसको साधारण नित्यपूजकका स्वरूप माननेसे पूजनका मार्ग और भी अधिक इतना तग (संकीर्ण) हो जाता है कि वर्तमान १३ लाख जैनियोमे शायद कोई बिरला ही जैनी ऐसा निकले जो इन समस्त लक्षणोंसे सुसम्पन्न हो और जो जिनदेवका पूजन करनेके योग्य समझा जावे । वास्तवमे भक्तिपूर्वक जो नित्यपूजन किया जाता है उसके लिये इन बहुतसे विशेषणोकी आवश्यकता नहीं है, यह ऊपर कहे हुए नित्यपूजनके स्वरूपसे ही प्रगट है । अत आगमसे विरोध आने तथा पूजन जि. पू. ३
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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