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________________ अणिमादिक ऋद्धिीधारक किम, देव समर्थ बखानो। ध्वस्त भये जब वे रावण कर, तिहि बल भी क्या मानो॥ राम मनुजने जाको मारा, उलँघ अम्बुराशीको। हुवो राम भी सो यमगोचर, विधिसे अन्य बली को ?॥३३॥ व्याप रहा है शोक दवानल, इस भव बनके माहीं। मूढ लोक-मृग नारि-मृगीमें, लीन नहाँ निवसाहीं ॥ कालव्याध निर्दई सदा इन, सन्मुख पाय-सभोंको । नाश करै, शिशु तरुण रद्ध भी; तासे नाहिं बचै को ॥३४॥ सम्पत रूप लतायुत वनिता, वेलालिंगित जानो। पुत्रादिक प्रिय पत्र तथा रति,-सुखफल सहित प्रमानो ।। इम उपजा भव वनमें जन तरू, कालदवानलसे जो । व्याप्त न हो तो फेर अन्य क्या, बुधजन अवलोकै को १॥३५॥ बॉछे है सुख मनुज जगतमें, कर्म दिया पर पावै । निश्चय मरण लहे हैं सब जन, तदपि तासु भय खावें। अणिमादि सुस्थमनस शक्ता किमत्रोन्यते, ध्वस्तास्तेऽपि परपरेण सपरस्तेभ्य कियान् राक्षस । रामाख्येन च मानुपेण निहितः प्रोल्लष्य सोप्यम्बुधिम् , रामोप्यन्तकगोचर समभवत्कोऽन्यो बलीयान्विधे ॥३३॥ सर्वत्रोद्गतशोकदावदहनव्याप्त जगत्कानन,मुग्धास्तत्र वधूमृगीगतधियस्तिष्ठन्ति लोकैणका । कालव्याध इमानिहन्ति पुरत प्राप्तान् सदा निर्दय-स्तस्माजीवति नो शिशुर्न च युवा वृद्धोपि नो कश्चन ॥ ३४ ॥ सम्पच्चारुलतः प्रिया परिलसदल्लीभिरालिगितः पुत्रादिप्रियपल्लवो रतिसुखप्राये फलैराश्रित । जात ससृतिकानने जनतरु कालोपदावानल,-व्याप्तश्चेन्न भवेत्तदा बत बुधैरन्यत्किमालोक्यते ॥ ३५ ॥ वाछन्त्येव सुख तदत्र १ पीडित । २ समुद्र । ३ बालक, जवान, और बूढा । ४ तो भी मरनेसे डरते हैं।
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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