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________________ पहलै ऊँचा चदकर दिनकर, अपनो तेज प्रकाशै। उस ही दिन पुन नीचे उतरै, पतन आपनो भासै। यह निश्चय सत जान कौन है, मानुष वे जगमाहीं। पर्यायनके पलटत जिनके, उरमें शोक बसाहीं ॥३०॥ शशि सूरज अरु पवन खगादिक, नंभमें ही विचरै है। गाड़ी घोड़ा आदिक थलचर, अॅपर गमन करैं हैं । मीनादिक जलमाहिं चलें, यम;-सर्व और विचरै है। मुक्ति विना किस थान जीवकै, वर्चवो यतन सरै है ॥३१॥ कर्मउदयके सन्मुख क्या है, देव देवता भाई?। वैद्य मंत्र औषधि क्या कर है, मणिविद्या चतुराई १ ॥ तैसे ही है मित्र वाऽन्य भू-पादि लोक त्रय माहीं। ये सब मिलकर भी कर्मोदय,टारन समरथ नाही ॥३२॥ याति नयास्यति । स हि शोक मृते कुर्वन् शोभते नेतर पुमान् ॥२९॥ प्रथममुदयमुच्चैर्दूरमारोहलक्ष्मी,-मनुभवति च पात सोऽपि देवो दिनेशः । यदि किल दिनमध्ये तत्र केषा नराणा, वसति हृदि विषाद सत्स्ववस्थान्तरेषु ॥ ३०॥ आकाश एव शशिसूर्यमरुत्खगाद्या, भूपृष्ठ एव शकटप्रमुखाश्चरन्ति । मीनादयश्च जल एव यमस्तु याति, सर्वत्र कुत्र भविना भवति प्रयत्न ॥३१॥ किं देव किमु देवता किमगदो विद्यास्ति कि किं मणिः, किं मत्र किमुताश्रयः किमु सुहृतिक वा सगधोऽस्ति सः । अन्ये वा किमु भूपतिप्रभृतय सन्त्यत्र लोकत्रये यै सर्वैरपि देहिन स्वसमये कर्मोदित वार्यते ॥ ३२ ॥ गीर्वाणा १ सूर्य। र आकाश ।३ बचनेकी तदबीर चल सकती है। ४ कर्मके उदयको टालनेके लिये।
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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