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________________ ( २१ ) हे आत्मन् जो तुम इतने काल इंद्रियनिके विषयनिमैं वांछारहित होय अनशनादि तप किया है सो अनंतकालमैं आहारादिकनिका त्यागसहित संयमसहित देहकी ममतारहित समाधिमरणके अर्थि किया है अर जो अहिंसा सत्य अचौर्य ब्रह्मचर्य परिग्रहत्यागादि व्रत धारण किये हैं सो हू समस्त देहादिक परिग्रहमैं ममताका त्याग करि समस्त मनवचनकायतें आरंभादिक त्यागकर समस्त शत्रु मित्रनिमैं वैर राग छांड़करि उपसर्गमैं धीरता धारणकर अपना एक ज्ञायकस्वभावको अवलंबनकर समाधिमरण करनेके अर्थि किये हैं अर जो समस्त श्रुतज्ञानका पठन किया है सो हू संक्लेशर - हित धर्मध्यानसहित होय देहादिकनितें भिन्न आपकूं जानि भयरहित समाधिमरणके निमित्त ही विद्याका आराधनकरि काल व्यतीत किया है अर मरणका अवसर मैं हू ममता भय राग द्वेष कायरता दीनता नहीं छांड़ोगे तो इतने काल तप कीने व्रत पाले श्रुतका अध्ययन किया सो समस्त निरर्थक होंयगे तातैं इस मरणके अवसर मैं कदाचित्सावधानी मत बिगाड़ो ॥ १६ ॥ अतिपरिचितेष्ववज्ञा नवे भवेत्प्रीतिरिति हि जनवादः । चिरतरशरीरनाशे नवतरलाभे च किं भीरुः ॥१७॥
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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